रिश्तों पर दर्द भरी शायरी, दिल के किसी कोने में दबे उन तमाम जज़्बातों को बयां करती है जिन्हें कह पाना बहुत मुश्किल होता है।
ऐसे ही दिल तोड़ने वाले हालातों में खुद को बहलाने के लिए रिश्तों पर दर्द भरी कविताएं पढ़ने से राहत मिलती है।
इसलिए मैंने इस संकलन में Painful Quotes को शामिल किया है, जिन्हें आप रिश्तों पर दर्द भरे status की तरह Share कर सकते हैं।
रिश्तों पर दर्द भरी शायरी | Messages To Express The SADNESS
आइए रिश्तों पर दर्द भरे status पढ़ना शुरू करते हैं –
1. तालुक्कात उनसे पुराने वाले नहीं रहे, वक़्त ने एक लम्बी दूरी तय कर दी और अब मुलाकातों के ज़माने नहीं रहे। |
2.
कभी हम उनकी रात दिन में थे शामिल, अब ख़यालों में भी मौजूदगी नहीं हासिल। |
3.
बुझते है जलते हैं यादों के दिये, ऐसा क्या गुनाह किया हमने जो इतने सितम हम पर किए, वफा के बदले हमें क्या मिला दर्द भरे अश्क जो हमने पिए। |
4.
हर एक उलझे सवाल को, उनके जवाब की तमन्ना है मौत से पहले वो रूबरू हो, उनसे मुलाक़ात की तमन्ना है। |
5.
खामोश-सा हो गया है, तुम्हारे बाद ज़िंदगी का मंज़र कभी गुल खिला करते थे, अब तो हैं मुद्दतों से बंजर। |
6.
गुज़रता है दिन ब-मुश्किल, पर रात नहीं गुज़रती तेरे बिना मेरे हमदम, ज़िंदगी अब नहीं गुज़रती। |
7.
जिक्र उनका जो हुआ, गुज़रा ज़माना याद आया हमको उनके साथ बिताया, हर लम्हात याद आया। |
8.
मेरे दर्द का इलाज, किसी चारागर के पास नहीं जिसके पास है वो मेरे, तसव्वुर में भी पास नहीं। |
9.
दर्द की घटा घिर आयी, और आखों में बरसात हुई शतरंज वक़्त ने बिछाई, और हमारी आखिर मात हुई। |
10.
नादां दिल की, हसरतों पर बस नहीं चलता दिल उनसे मोहब्बत की, आरज़ू करता है पर उनका दिल ज़रा-सा भी, नहीं पिघलता। |
11.
बचपन की दोस्ती पर हमको गुमान था, गलतफहमी की दीवार फिर ऐसी खड़ी हो गई दूरियां इतनी बढ़ी कि देखे हुए मुद्दतें हो गई, खून के रिश्तों से भी ज़्यादा जिन पर ऐतबार था। |
12.
रेशम का धागे की नींव पर पक्के रिश्ते बनाए थे, वह मुंह मोड़ कर चल दिए जो दिल में बसाए थे कोई पूछे उनसे ऐसी क्या खता हुई हमसे, जो बचपन के साथी थे और रूह में समाए थे। |
13.
तन्हाई में उनके ख़याल जब आते हैं, दर्द में हमें मरहम लगा जाते हैं कोई मोहब्बत को इल्ज़ाम ना देना, इबादत की तरह हम निभा जाते हैं। |
14.
खून करके वो ज़ज्बात का, महफ़िलों में सरेआम घूमते हैं अश्कों की लड़ियाँ टूटती नहीं, वो हमें बेहाल देख खुश होते हैं। |
15.
आज रात अपने चांद के बिना आई है, महबूब ने भी हमसे ऐसे ही दूरी बनाई है इश्क किया तो ऐसा क्या जुल्म किया हमने, जहां तक निगाह जाती वहां तक तन्हाई है। |
16. शिद्दत से वो हमारी, वफा का सिला देते हैं दर्द की इन्तेहाँ कर, हमें अक्सर रुला देते हैं। |
17.
वो अपना बनकर वार करते हैं, हर ज़ख्म का ठिकाना पता है उनको हरा रखने के लिए वहीं ज़्यादा कुरेदते हैं। |
18.
दर्द मुसलसल अपनी कहानी कहता है, सजल आँखों से अश्क बनकर बहता है। |
19.
सूखे हुए गुलाब की तरह, खुश्क हो गये हैं जज़्बात पीले पत्तों की तरह झड़ते हैं, अश्क चाहे दिन और रात। |
20.
उन्हें हमारे दिल से खेलकर, जाने क्या मिलता है ऐसा को कोई किसी, पराये के साथ भी नहीं करता है हर बात पर तल्खी, हर बात पर सख्त मिज़ाज उनके इस व्यावहार से जी हमारा जलता है। |
21.
कभी तो हाथ थाम कर, वो प्यार से बात करे हम जान दे देंगे, दिल की अगर बात करे पर न जाने क्यूँ, इतने सख्त मिज़ाज रखते हैं उनसे कोई कह दो कि, हम पर न ऐसे वार करें। |
22.
जब से तूने रुख है मोड़ा, चांदनी जलाती है आशियाँ किरनें भी अंधेरा करती हैं, आफताब ने भी कहां छोड़ा। |
23.
चांद करता है बातें, शब लोरी सुनाती है पर तेरी याद सनम, मुझे पूरी रात जगाती है तू अगर ख्वाबों में शिरकत दे तो, मैं सो जाऊं पर तेरी मौजूदगी मुझे वहाँ भी नज़र नहीं आती है। |
24.
कोई कह दे हमसे बेवफा नहीं है हम, वक्त के आगे किसकी चली है किस्मत ने भी हमारे लिए नहीं भली है, दिल हमारा शब-ओ-रोज़ अश्क बहाता है खुदगर्ज ज़माने के आगे बस बेबस हैं हम। |
25.
कुछ और तमन्ना नहीं रखी थी, बस दोस्त से दोस्ती की जुस्तजू थी छोड़ गया वह भी हमें, पथरीले रास्तों पर अकेले इससे अच्छा तो दुश्मनी भली थी। |
26.
ईंट-पत्थरों के मकान को घर समझते हैं, इतने नादान है यह भी नहीं जानते कि संगमरमर में नहीं मिट्टी में गुल खिलते हैं। |
27.
न वो आते हैं, न उनका पैगाम आता है डाकिया आता है और, यूँ ही लौट जाता है मानते हैं कि गुल नहीं होंगे, उनके गुलशन में पीले पत्तों को ही, भेज देते तो क्या जाता है। |
28.
बचपन का एक, खिलौना नहीं था जो टूट गया भाई था वह मेरा, ज़िंदगी के थपेड़ों में छूट गया। |
29.
जो ज़िंदगी भर हमसफर बनकर, साथ देने का वादा करते थे छोड़ गए हमें दोराहे पर, जिन पर हम दिल-ओ-जान अपनी न्योछावर करते थे। |
30. कल भेजी थी एक, बेनाम से पते पर तुम्हारे लिए चिट्ठी मैंने, कभी हमारे दिल के घर किया था अधिकार तुमने। |
31.
खूब सौदागर निकला, वह दिल का सौदा कर गया एक ज़िंदगी दे गया पर, एक ज़िंदगी ले गया। |
32.
जागती आंखों से ख्वाब देखते हैं, नींद तो बरसों से आई नहीं खयालों में उनका इंतज़ार देखते हैं। |
33.
न सोना न चांदी, न हार मांगती हूंँ मैं तुझसे बस, थोड़ा-सा प्यार मांगती हूंँ हर लफ्ज़ तेरा, छलनी करता है मेरे दिल को घाव दिख जाए, तुम्हें वो एहसास माँगती हूँ मैं तेरे साथ नव जीवन की, शुरुआत मांगती हूंँ। |
34.
दर्द इतना बरदाश्त किया, तुमसे बिछड़ने के बाद कि, एक आदत बन गई मोहब्बत खुदा की अज़मत थी अब एक इबादत बन गई। |
35.
तुझसे मोहब्बत करने की जो खुशी थी, उससे ज़्यादा तो बिछड़ने का गम है दिल में कशमकश-सी लगी रहती है कि, ज़िंदगी आज मुकम्मल है या कल कमी थी। |
36.
जिस रिश्ते को सींचा था, बड़े प्रेम से हमने उसे वक्त ने आंधियों के, हवाले कर दिया न जाने कब, यह तूफान लगेगा थमने। |
37.
रिश्तो में नहीं बची है, अब प्रेम की तपिश जाने कहांँ खो गई, हमारे बीच वह कशिश बर्फ की परतों ने, सर्द किया है जज़्बातों कों नाकाम-सी नज़र आती है, बचाने की हर कोशिश। |
38.
वह जो किया करते थे, मोहब्बत के वादे कि साथ हमारा, कयामत तक निभाएंगे वह हाथ झटककर, हमारा तूफान में छोड़ गए। |
39.
चांदनी की डोली सजेगी, तारों की बारात काली बदरी ऐसी छाई, आ गई बरसात किस्मत ने उजाड़े सपने, ऐसा किया आघात। |
40.
गर्द की चादर पड़ गई है, अर्से से हमारे रिश्ते पर हवा का रुख इधर हो तो, कुछ पर्तें हटे उन पर। |
41.
माली ने संवारा था गुलशन, अटूट था वो बंधन आई ऐसी फिज़ा, उजड़ गई बगिया देखते रहे हैं बेबस लोचन। |
42.
ज़िंदगी में कुछ रिश्तों को बचाने का, हर प्रयास नाकामयाब हो गया जितना पकड़ने की कोशिश की, वह उतना ही हाथों से रेत की तरह फिसल गया। |
43.
वक्त ने वफा न की, किस्मत ने न की यारी हम कब तक दम भरते, उस बेजान से रिश्ते में हाथ में आई बस लाचारी। |
44.
अब किस को इल्जाम देना, इश्क़ के न मुक्कमल होने का वक्त को जब यही मंजूर था तो, हमको तो पड़ेगा सहना। |
45.
जुबान दर्द की होती तो, चीखती खामोशी सुध-बुध हमें रहती, नहीं छाई है बेहोशी घाव पर नमक लगाकर, नासूर बनाते हैं पछताएंगे हमें खोकर, दूर होगी मदहोशी। |
46.
दुनियादारी की बातों से, फुर्सत मिले उनको तो कभी हमारे चेहरे की, तरफ भी रुख करें आंखों की खामोशी ही, बयान कर देगी तड़पते दिल के दर्द की, दास्तान उनको। |
47.
लुटेरा लूटकर ले गया, फूल को जवां होते ही माली आंखें मूंद बैठा रहा, जिसने कभी खून से सींचा था बीच अंकुरित होते ही। |
48.
कभी जो आंखें प्रेम में डूबी रहती थी, वह पथरा गई है मुद्दतों से कांच के टुकड़ों की, चुभन भी सह लेती हैं जो कभी अश्कों को बहा कर, बात कहती थीं। |
49.
कभी जो हमारे करीब थे, हम समझते थे नसीब थे वो वक़्त की आंधी में, न जाने कहाँ खो गए किस्मत के भी तारे सो गए। |
50.
हमने जिनकी परवाह की, वो हमसे बेपरवाह हो गए वादे कर थे निभाने के, तूफ़ान के आते ही मझधार में छोड़ गए। |
51. महफ़िलों मे मन घबराता, तन्हाइयों में मेले हैं दुनिया की भीड़ में, खुद को खो देते हैं हम सुकून मिलता है जब, खुद से मुलाकात होती है अपने को समझना आसान है, इसलिए हम अकेले हैं। |
52.
घुटती है सांसे, दम तोड़ती हैं धड़कनें खुशियों का एहसास होना, हो गया है बंद गमों की आदत है, अब न आती कोई मुश्किलें इश्क़ ने हमें एसी, देहलीज़ पर खड़ा कर दिया उन तक पैगाम भी, पहुंचाने में आती हैं अड़चनें। |
53.
न दिन में सुकून आता है, न रात में आराम अश्क भी बहाए तो, इश्क़ बदनाम होगा सरेआम पर खुदा चाहेगा तो ज़रूर, मुकम्मल होगा इश्क़ हमें खुदा की रहमत, पर है पूरा एहतराम। |
54.
दर्द भी वही है, दवा भी वही है कातिल भी वही है, मसीहा भी वही है इश्क किया तो, मुसीबत खुद बुला ली नहीं करते तो क्या, अधूरी नहीं ज़िंदगी है। |
55.
दोस्ती मांगी थी उनसे, जायदाद तो नहीं मांगी थी वो पीठ पीछे छुरा घोंप गए, ऐसी दुश्मनी भी नहीं मांगी थी। |
56.
कभी वादा था, सात फेरों के वचन निभाएंगे वह इंसानियत का, फर्ज भी न निभा सके ज़रा-सा तूफान, क्या आया जीवन में हमें मझधार मे छोड़ कर, साहिल पर जा बेठे। |
57.
न दिल का रिश्ता, न रूह का कभी रहा है बस उनसे अब, जन्म का दर्द का रिश्ता क्योंकि दर्द ही उनसे, लगातार मिलता रहा। |
58.
इतना एहसान कर दे, वो हम पर कि ज़िंदगी में शिरकत दें या नहीं, ख़यालों में तो बस ठहरें रहें कम-से-कम यह हक तो दे हमको, सांस के साथ तो आते-जाते रहें। |
59.
उसके जाने के बाद, खुद को जाने दिया हमने क्या करें अपनी जान से, ज़्यादा माना था हमने। |
60.
कभी जो आँखें, प्रेम में डूबी थीं वो पथरा गईं हैं, मुद्दतों से कांच के टुकड़ों की, चुभन सह लेती हैं जो कभी अश्क बहा कर, बात कहती हैं। |
61.
दुनियादारी से फुर्सत मिले उनको, कभी हमारे चेहरे की तरफ भी रुख करें आंखों की खामोशी बयां कर देगी, टूटे दिल के दर्द की दास्तान उनको। |
62.
लुटेरा लूटकर ले गया फूल को जवां होते ही, माली आँखें मूंद हाँथ पर हाँथ धरे बैठा है जिसने खून से सींचा था बीज़ को अंकुरित होते ही। |
63.
सुबह दर्द की होती तो चीखती खामोशी, बस इसी बात का तो फायदा उठाते हैं वो घाव पर नमक लगाकर नासूर बनाते हैं, हमें खोकर बहुत पछताएंगे वो। |
64.
वक़्त ने वफा न की, किस्मत में न की यारी हम कब तक दम भरते, टूटे हुए बेज़ान से रिश्ते में हाँथ आयी बस लाचारी। |
65.
रिश्ते को बचाने का, हर प्रयास नाकामयाब हो गया बहुत पकड़ने की कोशिश में, रेत की तरह फिसल गया। |
66.
इश्क के फूलों को सुर्ख करने के लिए, लहू दिल जिगर का लगता है दर्द सह कर भी उफ्फ नहीं करता, जो सच्चा इश्क करता है। |
67.
बहारों के इंतजार में हमने मुद्दतें गुज़ार दीं, पतझड़ के पीले पत्तों का धरौंदा बना लिया पहले दिल कुर्बान किया था, फिर सांसे निसार दीं। |
68.
सुर्ख गुलाबों की चाह में हम मोहब्बत कर बैठे, दामन में जब कांटे आये तो सोचा क्या कर बैठे। |
69.
रिश्तों में हो अगर सच्चा विश्वास तो, दूर रहकर भी आती है एक दूजे की याद। |
70.
हम बैठे हैं अभी भी उसी राह पर, जिस राह पर छोड़ गए थे वो कभी तो नाराज़गी होगी उनकी दूर, कभी तो वहाँ का रुख करेंगे वो। |
71.
वह तराजू में तो तोलते रहे हमारे रिश्तों को, जिसमें हमने दिल और जान निसार किया था मानते हैं कि दुनिया में लेनदेन का है प्रचलन, पर हमने कहा व्यापार किया था। |
72.
उल्फत में हमारी हमें कहीं का न छोड़ा, कभी किस्मत ने नज़रअंदाज़ किया कभी वक्त ने मुंह मोड़ा, हमारा दिल ही नहीं मन तक को तोड़ा। |
73.
अजीज थे वह, हमारे ज़माने में थे सबसे प्यारे एक छोटी-सी गलतफहमी को, दिल से यूं लगा बैठे हमें छोड़कर दुनिया के हर इंसान से, दोस्ती निभा बैठे। |
74.
किसको सुनाए अपने दिल का हाल, किसके पास है वक्त जो समझेगा इसलिए आईने से कह देते हैं, वह हमारे साथ हंस लेता है हम उसके साथ रो लेते हैं। |
75.
चिंगारी-सी जलती है दिल के आस-पास, अंगारों का अक्स आंखों में नज़र आता है पलछिन-पलछिन धुआँ होते हैं हमारे ज़ज्बात पर, धुंआ उसके पास कहां पहुंच पाता है। |
76.
बेजान से जिस्म से वो लफ्ज़ों के खंजर उतारते हैं, घायल करने के बाद हमसे हंसने की उम्मीद लगाते हैं नादान है यह नहीं जानते कि बुत कहां मुस्कुराते हैं। |
77.
रिश्तों को सुलझाने की चाह में वो और उलझते हैं, कुछ लोग रिश्तों को लिबास की तरह बदलते हैं। |
78.
जो कभी पास-पास थे वो अब दूर-दूर हैं, भले ही कोई वास्ता नहीं रखते हमसे पर दिल के किसी कोने में बदस्तूर हैं। |
79.
दिन में ख्यालों में शामिल हैं, रात को ख्वाबों में दस्तक देते हैं कभी अश्क में झलकते हैं, कभी आईने में नज़र आते हैं दर्द में अकेले छोड़ते नहीं हमको, वो पल भर के लिए कहां दूर होते हैं। |
80.
ज़माना जाम का सहारा लेता है, दिल के दर्द को भुलाने को हम उनकी निशानी को कैसे भुलाएं, इश्क नहीं किया मिटाने को। |
81.
खुशकिस्मत होते वो जिनका इश्क परवान चढ़ता है, हमे तो उन्हें ज़माने से छुपा दुआओं में रखना पड़ता है। |
82.
उनके दूर जाने के बाद, उनका ख़्याल जाता नहीं कोई ख़्वाब भी सजता नहीं, आँखों में कोई जंचता नहीं। |
83.
कभी किताब की तरह पढ़ते थे हमको, अब हम कोरे कागज़ से ज़्यादा कुछ नहीं अब हम उसी काग़ज़ पर नयी कहानी लिखेंगे, ठोकर से हम और निखर जाएंगे वो जानते नहीं। |
84.
रश्क होता है प्रेमियों पर हमें, जिनकी मोहब्बत मुकम्मल हो गई हमने भी शिद्दत से की थी वफा पर, वो गर्दिश में कहीं खो गई। |
85.
दर्द की चादर ओढ़कर रात बिरहन सो गई, बिलखते रहे ज़ज्बात भीगता रहा तकिया चांद की लुका-छिपी से रश्क चाँदनी भी खो गई। |
86.
दर्द की इम्तिहां यह हुई कि एक आदत बन गई, क्रत्रिम-सी मुस्कान हमेशा लिए होंठों पर फब गई ज़माने को मतलब न भी हो तब भी ख्याल जताता है, हम दर्द मे क्यूँ है यह इल्ज़ाम भी हम पर लगाता है। |
87.
दिल पर पत्थर मारकर वो मरहम का नाटक करते हैं, खुद दर्द देते हैं फिर अपने बनने का दिखावा करते हैं। |
88.
शाम आई और उनका ख्याल भी लाई, दर्द लाई और कुछ अश्क भी सजा लाई लोग टूटे दिल के लिए मैखाने का रुख करते हैं, हमें उतरती नहीं खुमारी जो जुदाई ने पिलाई। |
89.
सांस चलती है जब वो किया करते हैं, मौत आती नहीं मांगने से भी खुदा से शायद वो हमारी उम्र की दुआ करते हैं, हम चाहते हैं कि भूल जाएं अब हमको क्यों हमारी इतनी परवाह किया करते हैं। |
90.
अंगीठी में सुर्ख कोयले की तरह, धूं-धूं करके जलता है दिल फिर अंगारों-सी धधकती हैं आंखें, इश्क में दर्द के सिवा क्या हुआ हासिल। |
91.
फासले इतने ज़्यादा न बढ़ाओ कि दूर हो जाएं हम, ज़िन्दगी से तुम्हारी हमेशा के लिए चले जाएं हम थोड़ी समझ से रिश्ते को बचाने का प्रयास तो करो, दुनिया मतलबी है हर कोई नहीं करेगा परवाह अभी भी देर नहीं हुई है हाँथ बढ़ा लो रुक जाएंगे हम। |
92.
आंधियों में चिराग जलाने की कोशिश की थी, हमने एक बेवफा से वफ़ा की उम्मीद की थी। |
93.
मुबारक हो तुमको तुम्हारा फंसना, हमें कभी भी अब तुम याद न आना हो सके तो हमें हमेशा के लिए भूल जाना। |
94.
बंजर-सी ज़मीन में कैसे खिल सकते हैं फूल, बस यही हम समझे नहीं और कर बैठे भूल मोहब्बत में आए हमारे झोली में दर्द भरे शूल, किस्मत ने दगा दिया या उन्होंने की बेवफ़ाई ग़र दर्द है निशानी इश्क की सर आखों है कुबूल। |
95.
चीखती है खामोशी और आँखों में है दर्द के साये, आखिर जीवन के हम किस मोड़ पर चले आए दिल का खिलौना समझ के हर कोई खेल जाता है, जिनको इतनी तरजीह दी वही दुत्कार जाता है। |
96.
परी-सी लगती थी वो, फिर भी हमसे बड़ी थी वो बचपन में साथ खेली, सुख-दुख की सहेली थी वो हाथ छुड़ाकर अपना, परियों के देश चली गई बस देखते रह गए हम, पल में छूमंतर हो गई एक टीस-सी उठती है, दर्द आंखों में आ जाता है छोटी बहन को छोड़कर, भला ऐसे कौन जाता है। |
97.
उजला-सा दिन है पर मन में अंधेरा जाता नहीं, ठहरी हुई है ज़िन्दगी कहीं रास्ता नज़र आता नहीं तुम नहीं आओ तो अपनी खबर ही भेज दो, बेचैन हैं सांसे तुम्हारी खैरियत भी कोई बताता नहीं। |
98.
रिश्तों की डोर को इतना भी न खींचो, बड़ी नाज़ुक है वह झट से टूट जाएगी कितना भी कोशिश कर लोगे बाद में तुम पर, पहले जैसी बात फिर न आ पाएगी। |
99.
मोहब्बत की शरर जो जलती है सीने में हमारे, लाख कोशिश के बाद ज़माना नहीं बुझा पाएगा इश्क बनके छड़कन धड़केगा सीने में कयामत तक, जीते जी क्या मौत के बाद भी बंधन नहीं छूट पाएगा। |
उम्मीद करती हूँ कि रिश्तों पर दर्द भरी शायरी ने आपको खुद के किस्से ज़रूर याद दिलाये होंगे। Comment Section में मुझे ज़रूर बताएं कि कौन-सी शायरी आपको सबसे ज़्यादा पसंद आई।