आजकल की Busy Life से छुटियाँ मिलते ही लोग ऐसी जगह घूमना पसंद करते है, जहां Nature से जुड़ सकें। प्रकृति की सुंदरता पर शायरी, ऐसे ही खास Experiences से बनी है।
ये तो हम सभी जानते हैं कि मौसम के साथ मन के भाव बदलते हैं, इसलिए कुदरत की खूबसूरती पर शायरी जितनी की जाए कम ही लगती है।
आपके लिए मैंने इस अद्भुत संकलन में प्रकृति प्रेम पर शायरी के साथ Beautiful Nature Captions भी जोड़े हैं। इन्हें आप कभी भी पढ़ सकतें हैं और अपनों के साथ Share कर सकते हैं।
प्रकृति की सुंदरता पर शायरी | 99 Thoughts To Calming Your MOOD
आइए हरियाली पर शायरी पढ़ना शुरू करते हैं –
1. सुंदरता किधर मैं ढूंँढू, जिधर देखूँ बस खूबसूरती ही, खूबसूरती है। |
2.
ये पीली और सफेद फूलों की क्यारियाँ, लुभाती हैं मुझको ये सारी। |
3.
सूखे पत्तों में भी तेरी सुंदरता झलकती है, इन सूखी टहनियों में भी कितनी कमाल लगती हो। |
4.
समंदर के लहरों में भी तेरा नाम सुनता हूंँ, तेरी गुनगुनाए गीतों को इनसे आकर सुनता हूंँ। |
5.
बोगनवेलिया की डालियों के बीच, ये ढलता हुआ सूरज मानों आज को अलविदा कह रहा हो कल फिर नई सुबह लेकर आऊंँगा, मानों ऐसा कह रहा हो। |
6.
बारिश में भीगती हर मोहब्बत को, भिगो देते हो कहीं प्यार भर देते हो, तो कहीं नैनो से खाली कर देते हो। |
7.
बारिश की बूंदों के बीच, जो सूरज की किरने छलकती हैं इंद्रधनुष बनकर ये, कितनों के प्रेम को दर्शाती हैं। |
8.
ये बारिशों की छम-छम, पत्तों की सरसराहट हवाओं का मचलना, कितना मधुर संगीत सुनाता है। |
9.
चांँद अपनी चांदनी से है, जाने जाते बिन चांदनी क्या है, चांँद वैसे ही प्रकृति से ही तो हैं, हमारा जीवन बिन प्रकृति कैसे होगा, सृजन। |
10.
घुट रहे हो अगर खुद के अंदर, प्रकृति की गोद में चला आ खुद को पा लेगा यहांँ, शांति मिलेगी तुम्हें इतनी यहांँ। |
11.
शहरों के शोरगुल में भी, हरियाली ही पहुंँचाती है सुकून सबको। |
12.
बेजुबानों की जुबां बन जाते हैं, ये गुलाब दिल की बातें दिल तक पहुंँचा देते हैं, ये गुलाब। |
13.
झरनों का कल-कल संगीत, जीवन को सुरों में पीरोना और निश्छल होकर जीवन बिताना कितना सरल होता है, कहती है ये निर्झर। |
14.
पहाड़ों को चीरकर बहते हैं ये झरने, कठोर दिलो में भी हम वैसे प्यार जगा देते भावनाओं की लहरों को दिल में कैसे है समेटना, बताती है ये शांत रहकर वो समंदरे। |
15.
सुबह की हल्की-सी ठंड और कोमल-कोमल घासों पर नंगे पांव चलना, ज़िंदगी के हर ग़म और फ़िक्र को भुला देती है। |
16. सुबह की वो पहली धूप, पत्तों पर पड़ी वो ओस की बूँदें मानों प्रकृति ने सच में मोती दिए हो। |
17.
फूलों का एकतरफ़ा प्रेम भवरों के लिए, पता है नहीं देगा वो उसका साथ सदा के लिए फिर भी बुलाती है उसे, वो दो पलों का साथ भी इतना अज़ीज है उसे। |
18.
जो प्रकृति से प्रेम करे, उसे वो अपने ख़ज़ानों से भर दे जो खिलवाड़ करे इससे, अपने रौद्र रुप से खत्म कर दे वो उसे। |
19.
काटते हैं जो पेड़-पौधे ज़मीन बढ़ाने को ज़मीन ही खिसक जाती है, उनकी इस गलती की वजह से। |
20.
शांत समंदर को यूंँ हल्के में ना ले, प्यार से इसे भी संवारा करें ये भी रंग बदलते हैं, ढलते हुए सूरज की किरणों के साथ। |
21.
जब हम टूटे हो और पूरी तरह भी बिखरे हो, तब कुदरत ही हमें अपनी बाहों में भर लेती है सजाती, संवारती और फिर से हमें ऊर्जावान बना देती है। |
22.
देखा है हमने सुनसान सड़कों पर भीगते हुए मुसाफिरों को, बारिशों की उन बूंदों में अपनी बचपन को जीते हुए। |
23.
ये हरे-हरे पत्ते जीवन के लिए आहार भी है और जीवनदायिनी ऊर्जा का स्रोत भी जितना हो सके हमें इसे संजोना चाहिए। |
24.
पेड़ हमारे जीवन का दर्पण जैसे नये पत्ते, सूखे पत्तों की जगह ले लेते हैं वैसे ही हमारे जीवन से जाने वाले, कभी वापस नहीं लौटते नये रिश्ते हमें घेर लेते हैं। |
25.
गिली मिट्टी की सौंधी खुशबू, हमारे अंतर्मन को भी खुशबूदार कर देती है। |
26.
प्रकृति की गोद में, हम छोटे बच्चे-सा उन्मुक्त होकर जीते हैं। |
27.
फलों से लदा पेड़ उस ज्ञानी पुरुष-सा होता है, जो सदा सबकी सेवा में रहते हैं। |
28.
जीवन में चंचलता, शायद झरनों ने ही हमें सिखाई है। |
29.
पहाड़ों की खूबसूरती को निखारने के लिए, कुदरत ने बर्फ़ भी क्या चीज़ बनाई है। |
30. ऊंँची उड़ान भरते पक्षियों ने हमें, आसमान छूना सिखा दिया नीचे उगी घासों ने हमें, समय पर झुकना बता दिया। |
31.
जितना प्यार हम प्रकृति को देते हैं, वह सूद समेत हमें वापस लौटा देती है। |
32.
हम जैसे अपने भविष्य के लिए, संपत्ति में निवेश करते हैं वैसे ही भविष्य के लिए हमें अपनी, प्रकृति में भी निवेश करना चाहिए।। |
33.
पेड़-पौधे हमारे बच्चों की तरह होते हैं, जितनी मेहनत हम इन पर करते हैं हमारा समाज उतना ही स्वच्छ और प्रदूषण रहित रहता है। |
34.
तेज़ रेलगाड़ी की एक खिड़की से, प्रकृति को निहारने का अपना ही मज़ा है। |
35.
बादलों ने कहा भूमि से, यूँ उदास ना हुआ करो भेज रहा हूंँ उपहार इन बूंदों का, अपनी आँचल में इन्हें समेट लेना। |
36.
काटोगे जो पेड़, नदियों पर जो बेमतलब बांध बनाओगे तो एक दिन कुदरत के कहर से पछताओगे। |
37.
न संजोगे अगर कुदरत को अब भी अगर तो, एक दिन खुद को ही खाली पाओगे। |
38.
प्यार करोगे पशु-पक्षीयों से अगर तो, खुद को प्रकृति के बीच पाओगे। |
39.
कल तक मैं हंसता था खिल-खिलाकर, खुली हवाओं में जो रहता था आज बंद कमरों में खुद को तड़पा रहा हूँ, अपने कर्मो पर पछता रहा हूंँ। |
40.
कल तक जो AC की हवा मुझे आरामदायक लगती थी, वो आज मेरा दम घुटा रही है बेचैन हो उठा हूंँ मैं उन खुली, ताज़ी हवाओं में विचरने के लिए। |
41.
बदलती ऋतुएँ और उसमें प्रकृति के विभिन्न रुप, चाहे हो ग्रीष्म या बरसात सबकी है अपनी सौग़ात। |
42.
प्रकृति नहीं है किसी भी रूप में निष्फल, दे जाती है वो हमें हर रूप में कोई न कोई फल। |
43.
सुनो मेरे बच्चों मत काटो ये पेड़, कहती है यह धरती माता पुकार के यही तो वो स्रोत है, तुम्हें देने को मेरे बच्चे। |
44.
धरती है रो रही, रो रहा है आसमान बच्चे हमारे गलत राह पर है चल पड़े, केसे होगा उनका कल्याण। |
45.
एक संतुष्ट इंसान हमेशा, प्रकृति के करीब होता है। |
46.
जितना करीब से तुम प्रकृति को निहारओगे, उतना ही तुम्हें ईश्वर के रचे चमत्कार दिखेंगे। |
47.
प्रकृति हमारी माता-पिता जैसी है, वो सदा हमें फल ही देती हैं। |
48.
जिसने समझ लिया, ये गूढ़ मंत्र प्रकृति ही जीवन देती है उसने पा लिया, जीवन का छिपा हुआ ख़ज़ाना। |
49.
अब तो समझो मेरे प्यारो, प्रकृति ही देती जीवन दान है इससे बड़ा नहीं, कोई वरदान है। |
50.
प्रकृति ने हर युग में जीवन को संवारा है, चाहे द्वापर युग हो या कलयुग हर युग में इसने साथ निभाया है। |
51. पहाड़ों में पड़ी उन संजीवनी बूटीयों को संभालो, कल नहीं तो कोई लक्ष्मण नहीं बच पायेगा फिर बुराई, कल कैसे हार पायेगा। |
52.
पेड़ लगाओ, अच्छे कर्म लौटकर आते हैं कल उन फलों को, जब कोई मुसाफिर खाएगा ये फल लौटकर, तेरी खुशियों में गिना जायेगा। |
53.
गुप्त दान महादान है, दिखावे के लिए तुम दान न किया करो किसी किनारे एक पेड़ लगा दो, कल किसी ज़रूरतमंद को ये तेरे नाम की छांँव और फल देगा। |
54.
जहाँ धरती और गगन मिलता दिखे, कुदरत भी वहाँ जन्नत दिखे। |
55.
प्रकृति से खिलवाड़ अगर कोई एक भी करें तो, सज़ा हजारों को मिले। |
56.
बचा लो अपने वनों को वरना कोई राम, अपने वनवास काल में भूखा ही मर जाएगा। |
57.
प्रकृति से प्रेम करो नहीं तो, जीवन चक्र ही खत्म हो जाएगा। |
58.
समझोगे अगर नहीं अपने पर्यावरण को तो, खुद को ही मिटा डालोगे। |
59.
प्रकृति की औषधियों का ख़ज़ाना, हमारे आयुर्वेद शास्त्रों से झलकता है। |
60.
अगर जो रूठ जाती है ये प्रकृति तो, विनाशकारी बन जाती है ये जीवनदायिनी। |
61.
रखोगे जो तुम अपने वातावरण का ख्याल, कभी नहीं आएगी कोई बीमारियां। |
62.
कल को कोसोगे जो आज नहीं संभालोगे तो, इस प्रकृति के रौद्र रूप को झेलोगे। |
63.
जो लोग करते हैं प्रकृति से प्रेम, वो अपने घरों में ही बना लेते हैं एक छोटा-सा उपवन। |
64.
ऋतुएंँ, प्रकृति की शोभा बढ़ाने आती है और हमारे जीवन को सुखमय बना जाती हैं। |
65.
हर ऋतु एक सीख दे जाती है, सुख हो या हो दु:ख हमारे जीवन के साथी है ये सब। |
66.
समंदर किनारे ढलता हुआ सूरज, ऐसा लगता है मानो एक कलाकार ने अपने पन्नों पर, कोई चित्र बनाया है। |
67.
हम छुट्टियाँ मनाने अपने गांँव या फार्म हाऊस ही, जाना पसंद करते हैं क्योंकि प्रकृति के करीब जाकर हम सुकून और तरोताज़ा महसूस करने लगते हैं। |
68.
चाहे सुबह की हो या शाम की चाय, आपके जीवनसाथी के साथ कुदरत हर दिन इसे ख़ास बना देता है, अपने नये रुप के साथ। |
69.
कमरे की 100 बत्तियाँ भी, क्या आपको सूरज की तरह ऊर्जा प्रदान कर सकती हैं? |
70.
टिमटिमाते तारों को, न जाने लोग क्यूँ देखते हैं शहरों में बहुत से रंग बिरंगी रोशनी आई है फिर भी रातों को सड़कों पर निकलकर, इन्हें क्यों ताकते रहते हैं। |
71.
लोग आजकल दोस्तों और रिश्तेदारों से इतने घिरे रहते हैं, फिर भी इन पहाड़ों में आकर अकेले ही बैठे रहते हैं। |
72.
शाम को नदी किनारे दूर से आते, एक नांव को निहारते रहते हैं ऐसा क्या है उस दृश्य में, जो लोग टकटकी लगाए बैठे रहते हैं। |
73.
प्रकृति में इतने सारे रंग कहाँ से दिखते हैं, कहीं ये कोई जादूगर तो नहीं। |
74.
ऋतुएं और हमारी भावनाएं, सब प्रकृति के ही तो देन हैं। |
75.
तुम कितनी सुंदर हो माँ, तेरी चेहरे की हरियाली, उन रंग-बिरंगे फूलों की सजावट, नयन को करते आकर्षित और मन को शांत। |
76.
क्या बात है प्रकृति, आज वर्षा होने के बाद तो तुम्हारा नूर ही कुछ और है। |
77.
प्रकृति ही हमें जन्म देती, पालन-पोषण भी वही है करती जब सांसे हमारी थम जाती तब भी, वही बाहों में भर आँसु बाहा जाती। |
78.
देखो आज सुबह कितनी निराली, आकाश लाल पीला और थोड़ा गुलाबी पर धरती पर छायी है हरियाली। |
79.
सुरज को डूबता देखूं, समंदर की लहरों को उछलता देखूं और मन में शांती तथा उल्लास को जगता देखूं। |
80.
आज बैठ कर छत पर फिर वही, चांँद सितारे देखने आई हूँ ताज़ी हवा में बैठ, खुलकर साँस लेने आई हूँ। |
81.
यूँ पूजा सिर्फ दिखावे की न करो, अगर जो हो सच में आभार प्रकट करना तो संरक्षण करो इस कुदरत का। |
82.
यूँ काला धुआंँ इन हवाओं में न भरो, एक दिन ये तेरे घर में घुस जायेगा भेंट स्वरूप तुम्हें ये कई बीमारियांँ दे जायेगा। |
83.
कहो कैसे प्रभु तेरे इन अगरबत्तियों से खुश होने वाले, जबकी तुम उनकी इतनी सुंदर रचना को प्रदूषित कर रहे हो अपनी इन बेतुकी परंपराओं से। |
84.
वातावरण को सिर्फ साफ मत करो, अपने व्यवहारो में सहूलियत नहीं अनुशासन लाओ। |
85.
चाहे गांँव में रहो या शहरों में, एक छोटा-सा बगीचा ज़रूर बनाओं अपने घरों में रोज़ खुद से मिलने के लिए। |
86.
किताबें और प्रकृति हमेशा आप के ज्ञान में वृद्धि करती हैं, आज अगर इस पर्यावरण को नहीं बचायेंगे तो कल हमारे अपने ही शिकायत करेंगे, क्या रखा है हमारे लिए। |
87.
बस थोड़ा वक़्त दे दो हमें, खुद स्वच्छ होने में सक्षम है कहता है ये पर्यावरण पर थोड़ा बैठकर सोचना ज़रूर, हम शिकायतें नहीं करते अगर जो तुम्हारी हरकतें, हालातों को काबू में ही रहने दे। |
88.
ऐसा कौन होगा जिसे कोयल की कुहू, मोर का नाचना, बारिशों की बूंदे अच्छी नहीं लगती होगी बस इतना है कि वो अपने प्रकृति प्रेम से अनजान है। |
89.
जो प्रकृति से प्रेम नहीं रखता, वो इन्सान कभी किसी से प्यार नहीं कर सकता। |
90.
न करों घमंड कभी इतना, समय नहीं रहता कभी एक समान सूरज भी ढक जाते हैं कभी, बादलों से। |
91.
बरसों रे मेघा, प्यार की तपिश को बुझा दो तेरे मिलन की आस में ही तो, ये घरती जल उठी है। |
92.
समंदर किनारे उन लहरों पर नंगे पांव चलकर देखो, कितना सुकून मिलता है। |
93.
प्रकृति हमें हमारी ज़रुरत की हर चीज़ दे देती है, पर फिर भी कभी हम उनसे संतुष्ट नहीं होते। |
94.
रंग बिरंगी तितली और फूलों को देखकर भी, क्या तुम्हें कुदरत के चमत्कार पर शक है। |
95.
जब-जब इस धरती पर विपदा आई, प्रकृति ने खुद को बहुत अच्छे से नये रूप में ढाल लिया। |
96.
एक सफल जीवन जीने को, प्रकृति हमें सक्षम कर देती है पर लालच में आकर हम ही, इसका साथ छोड़ देते हैं। |
97.
प्रकृति हमें फलों से भरी टोकरी, जीवन उपहार स्वरूप देती है पर उसे हम ठुकरा देते हैं, तभी तो उसके क्रोध का शिकार हम होते हैं। |
98.
टेक्नोलॉजी के नाम पर हम कुदरत पर अत्याचार करते रहते हैं तभी तो वो भी हमें दंडित करती रहती है। |
99.
जब लौटती हुई लहरें, आपके पांव तले बालू को समेट ले जाती हैं यह एहसास बस जिया जा सकता है। |
उम्मीद करती हूँ कि प्रकृति की सुंदरता पर शायरी ने आपके दिल को छुआ होगा और Experiences ज़रूर याद आए होंगे। Comment Section में मेरे साथ अपनी पसंदीदा शायरी Share करना न भूलें।