पति की तारीफ में शायरी, अनगिनत वादों और इरादों का वो हसीन तोहफा है जो अनकहे एहसासों को खूबसूरती से बयां करता है।

किसी भी खास मौके पर अपने पति के लिए romantic शायरी सुनाकर आप उनके दिल के बहुत करीब जा सकती हैं।

फिर क्यों न Affectionate Love Thoughts से मिलकर बनें पति की तारीफ में 2 line की शायरी के संकलन को पढ़ना शुरू करें।




पति की तारीफ में शायरी | 99 Captions To Express Your FEELINGS

आइए Husband ke liye 2 lines in Hindi पढ़ना शुरू करते हैं –

1.

मन की कोमल भावनाएँ, बिन कहे जो समझ जाए

पत्नी की नज़र में बस वही, समझदार पति कहलाए।

 

2.

बाबुल का था अँगना छोड़ा,

संग साथ पति से नाता जोड़ा।

 

3. 

सुनहरे सपने संजोए, कहाँ मिलेगा सौदागर

हमसफ़र तुम ही हो मेरे, सपनों के जादूगर।

 

4. 

अल्हड़ हैं अदाएं मेरी, वो इनके दीवाने

मैं उनकी चाहत हूँ, वो मेरे परवाने।

 

5. 

छोटी-छोटी बातों का रखते ख़्याल,

बिन कहे ही जान लेते दिल का हाल।

 

6.

ऐ -मेरे हमसफ़र,

बिन तेरे वीरान हर डगर।

 

7.

आस्था और आभार,

पति-पत्नी के जीवन का आधार।

 

8.

जीवन डगर जिनके बिना लगती है वीरानी,

वो मेरे दीवाने है और मैं भी उनकी दीवानी।

 

9.

बिन कहे रहते जब एक-दूजे के लिए बेक़रार,

सही मायने में कहलाते वही पति-पत्नी जोड़ीदार।

 

10.

 हर हाल बना रहना चाहिए रोमांचित ये रिश्ता,

मतभेद बस मनभेद न बने छोड़ो पुराना क़िस्सा।

 

11. 

मनमुटाव कुछ ऐसा बढ़ा, पहुँचा बच्चों के बीच

बने छोटू-मोटू हवलदार और मम्मी न्यायाधीश

अगली-पिछली कसर निकाली, आरोप लगाए तगड़े

बच्चों व मम्मी की बनी तिगड़ी, पति ने छोड़े सारे झगड़े।

 

12. 

रिश्ता खट्टा मीठा-सा होता है पति-पत्नी का,

पल में तौला पल में माशा ज्यों घटा व बादल का।

 

13. 

माना जीवन की डगर है मुश्किल, लगता है डर

हमदम तुम छोड़ न जाओ कहीं ख़्याल सताता, क्यों हर प्रहर ?

 

14.

चौराहे-सी है ज़िंदगी, आएँगे ख़तरे नाम बदल-बदल

संग-साथ करेंगे मुक़ाबला, रहेंगे साथ अग़ल-बग़ल।

 

15. 

मेरे रहगुज़र-बस हाथ थामें रहना, ऐसे ही पल-पल हरपल

सफ़र कट जाएगा साथ चलते-चलते, सुनो ना ऐ जान-ए-ग़ज़ल।

 

16.

जब हाथों में हाथ रहता है तुम्हारा,

झूम उठती हूँ मानों हूँ एक चमकता-सा तारा

परियों-सी नाचती हूँ कहकशां में,

जैसे चकोर को ढूंढ़ता हो चंदा बन आवारा।

 

17. 

सुनो! हँसी ठहाके जब संग हम तुम लगाते हैं,

दुनियां में तब सबसे अमीर हम ही नज़र आते हैं।

 

18.

महत्त्व जिसने पत्नी का जान लिया,

उस घर की वो रानी व अन्नपूर्णा कहलाती है

देते दिल से इज़्ज़त पाते मान ख़ुद भी,

हमसफ़र बन सच्ची साथी साथ निभाती है।

 

19.

 पहली मोहब्बत लड़कपन-भोले बालपन में,

जो भी बस अच्छा लगने लगता है

वर्षों बाद वही बन जाए हमदम,

तो सोचो फिर कितना अच्छा लगता है।

 

20. 

प्यार से जो बोल दे मीठे बोल,

दिल तो बस वही तड़पता है

नाज़-ओ-अंदाज़ उठा सके मिले हमदम ऐसा,

दिल पाने को मचलता है।

 

21.

महबूब यूँ रहता जब दिल में बंद,

गुलाब की ख़ुशबू-सा महकता रहता है

ज़िक्र भर छिड़ जाने पर चेहरा,

न जाने क्यूँ मेरा सुर्ख़ लाल हो दिखता है।

 

22. 

ख़ुशनसीब है वो जिनके रफ़ीक ही ज़िंदग़ी में, महबूब बन आते हैं

वादे किए थे जो अल्हड़पन में, बेशक दिल से फिर बख़ूबी निभाए जाते हैं।

(रफ़ीक = दोस्त)

 

23. 

चाँद तारे तोड़ के लाने वाले,

अक्सर सफ़र में पीछे छूट जाते हैं

आँखों की नमी को भाँप ले जो,

वही मोहब्बत असल में रहगुज़र कहलाते हैं।

(रहगुज़र = हमसफ़र)

 

24.

तुम भी न भूल जाना वक़्त के थपेड़ों में, ए मेरे आशना

प्रतिकूल स्थिति में भी वादे हो पूरे, ये ही है प्यार की कामना।

(आशना= महबूब)

 

25.

ज़रूरत है आज उस हमसफ़र की जो हमनफ़स बन,

अपने मन-मस्तिष्क के सिंहासन पर बैठाएगा

ज़रूरत पड़े जो तो बन पारसा आबिदे-पाक,

दुनियां के आगे चट्टान-सा बन खड़ा हो जाएगा।

(हम-नफ़स = मित्र, पारसा= बहुत अच्छे दिल वाला, आबिदे-पाक = पवित्र उपासक)

 

26.

उम्र गुज़री इस ख़याल में,

कुछ यादों में कुछ ख़ामख़ाह मलाल में

होश आया तो खो गए हम,

मोहब्बत के हसीन वफ़के-दिल के जमाल में।

(वफ़के-दिल = दिल का समर्पण, जमाल = उज्जवल सौंदर्य)

 

27.

ढूंढने निकले वो महबूब नादान, हमें अनजानी राहों में

रंजीदा दिल था उलझे रहे दोनों, बेमतलब के सवालों में।

 

28. 

गुलों के साए मानो लिपट गए, जानिब हमसफ़र बन कर

जहाँ के सारे रंग ठहर से गए, लबों पर तपिश बन कर।

 

29. 

कोई गुलाब तो कोई गुल, तो कोई कहता है शबाब

जागती आँखों से देखा ये ख़्वाब, क्या है मेरे हमदम का कोई जवाब।

 

30.

आँखों में सुर्ख़ डोरे, लबों पर रंगत है गुलाबी

धड़कने मुझे देख हुईं बेक़ाबू, बिन पिए भी लोग कहें उन्हें शराबी।

 

31.

दिन न जाने कब हुआ – न जाने कब ढली शाम,

आफ़ताब की तपिश भी मुझे पता न चली

और न जाने फ़लक से उतर आया कब मेरा चाँद।

(आफ़ताब = सूरज, फ़लक = आसमान)

 

32.

मोहब्बत की ग़ज़ल हमदम तुम हो, चाहतों का आबशार हो

चाँद आग़ोश में हो जब, आँगन में तुम बहती ब्यार हो,

पलकों के शामियाने में, ओंस पर पड़ी बूँदो की तरह

आँखें बंद कर समंदर की गहराई का, तुम ख़ूबसूरत एहसास हो।

(आबशार = झरना)

 

33.

मेरे हमनफ़स, तुम ही हो मेरे वेलेंटाइन

मेरे रहगुज़र, बस बने रहो ऐसे ही दिल में

ऐतबार दुनिया की, है दौलत सबसे बड़ी

बज़्म-ए-इशरत सजी रहें, बस यूँही लुत्फ़-ए-सफ़र में।

(बज़्म-ए-इशरत = ख़ुशी की महफ़िल, लुत्फ़-ए-सफ़र = यात्रा का आनंद)

 

34.

जीवन के अनुभव बन अल्फ़ाज़,

कहानी-क़िस्सों में ढल जाते है

संग गुज़ारे तुम्हारे ए आशना,

वही फिर हो मशहूर ख़ूब नाम कमाते है।

 

35. 

गृहिणी बनना सबसे कठिन कार्य,

औरों के सपनों में जीती है वो हरदम

प्यार के दो मीठे बोल क्या है इतने महँगे,

नहीं ख़रीद कर दे सकते हो सुनो हमदम।

 

36.

कहा उन्होंने कजरारी आँखों में भरी ये बादलों की गगरिया,

यूँ ही ज़ाया न किया करो

बहुत क़ीमती हैं ये आँसू तुम्हारे हर वक़्त,

हर किसी पर यूँ ही लुटाया न करो।

 

37. 

आँधी तूफ़ाँ ग़रज़ कर जब डराए,

सुनो हमदम बस ख़ुद को मज़बूत रखना

आते हैं देखने हमारा जज़्बा,

बस इसे ही हर हाल बरक़रार रखना।

 

38.

सुबह से लेकर रात तलक, करते सारे काम ख़ुश हो के हम

फिर भी जनाब फ़रमाते यूँ, नहीं आता तुम्हें कुछ करने का ढंग।

 

39.

जीवन में आए शून्य प्रहर में,

विश्वास प्रभा तुम्हारे चेहरे की लुभाती है

दुर्गम पथ हो चाहे कितना भी कठिन,

अमर प्रेम की हसरत जीना सिखाती है।

 

40.

हम ने भी भोलेपन से जताया, यूँ अपनापन

हम भी कहीं नहीं जा रहे थे, समझे जानेमन।

 

41. 

ऐसे-जैसे ये ढलती मद्धिम शाम बुन रही ख़्वाब,

सुबह की भोर होने का

दिल-ए-बेकल हो बदहोश हासिल करने ज्यूँ उम्मीद-ए-आशियाँ का,

संग अपने महबूब का।

(बदहोश=उद्धिग्न, उम्मीद-ए-आशियाँ = नीड़ की आशा)

 

42.

मैकदा में चश्म-ए-मयगूँ महबूबा ने रखे, जो अपने पाए नाज़ुक

तल्लीन थी उनकी निगाहें यूँ रुबरू होने, हम से करती जुस्तजू

यूँ कोई आरज़ू नहीं थी मशहूर हो, ज़माने में हमारी दास्ताँ

ग़ज़ल निकली जुबाँ से महबूब के, गुमनाम जहान में बदनाम हुआ चार-सू।

 

43. 

तुम और तुम्हारा अहसास,

जैसे जागती आँखों का सजीला ख़्वाब

लुत्फ़-ए-हयात में तुम्हारी मौजूदगी,

यानी हर सवाल का मिलता ख़ुद ही जवाब।

(लुत्फ़-ए-हयात = ज़िंदग़ी का सफ़र)

 

44. 

भूले ग़मज़दा जीवन के दर्द,

ख़्वाहिशों में बन क़ासिद आसान करते हो हालात

मसरूफ़ ज़िंदगी में बन के आते हो,

एक ख़ूबसूरत रहनुमा जैसा ख़यालात।

(कासिद = पत्रवाहक)

 

45. 

जीवन की डगर हसीन लगती,

मानों क़दम दर क़दम तुम हो मेरे साथ

सिर्फ़ तुम्हारा अहसास ही उमंग जगा जाता,

गोया रश्क-ए-माहताब हो मेरे साथ।

 

46. 

पति-पत्नी का रिश्ता है अनमोल

ख़ूबसूरत हसीन ख़्वाब-सा बेमोल।

 

47.

गला रुँध जाता है, भर आते है आँखों में आँसू

ग़लती पर जो डाँटा, चुप से हुए फिर ख़ुद ही तुम।

 

48. 

नहीं मानते कि उम्र हो चली है उनकी

तोहफ़ा ला के पूछते हो, तुम्हारा जन्मदिन है न आज?

 

49.

किस भाव से लिखूँ तुम पर मैं प्रियवर,

बंधन में बँधे अब तो हम जन्म-जन्मांतर

 

50.

आज उस चूड़ियों की दुकान पर रुके वो,

यानी खनखनाहट की धड़कन याद कर रहे है वो।

 

51.

पति-पत्नी के माधुर्य से, है दाम्पत्य-प्रतिभा

एक दूजे में ख़ुश, नहीं चाहिए कोई ओर दूजा।

 

52. 

पति-पत्नी सुख दुःख के साथी,

ज्यों दीपक संग जलती बाती।

 

53. 

एक ख़ुशमिज़ाज हमसफ़र,

बन जाए जीवन एक सुंदर सफ़र।

 

54. 

पति-पत्नी के विश्वास की डोर न टूटने पाए,

टूटे गर एक बार तो फिर प्रयत्न से भी जुड़ न पाए।

 

55.

दो अनजाने मिल एक डगर पर चलते है,

सुख दुःख के बन साथी संग-संग चलते है।

 

56. 

त्याग, ममता और एक दूजे के लिए समर्पण

पति-पत्नी रख समभाव करते स्वयं को अर्पण।

 

57. 

पति-पत्नी के बीच नोंकझोंक और तकरार,

न हो अगर कभी ये कैसी ज़िंदगी है यार।

 

58. 

सोलह संस्कारों में विवाह संस्कार शास्त्रानुसार श्रेष्ठ,

एक दूजे को करे प्रोत्साहित बनाए दोनो अपना जीवन सर्वश्रेष्ठ।

 

59. 

ये जो तुम्हारी “मैं” है न,

ये हमको “हम” नहीं बनने देती।

 

60. 

अहसास लिखूँ जज़्बात लिखूँ,

या गुज़रे तुम संग पलों के बयानात लिखूँ।

 

61. 

तुम संग जब से जोड़ा ये प्यारा-सा बंधन,

कहते है ये तो है सात जन्मों का गठबंधन।

 

62. 

मनमुटाव भी होगा और होगी, लम्बी तकरार

पर कोई कुछ कहे तुम्हें, नहीं सहन करूँगी ये वार।

 

63. 

सुना था एक तोहफ़ा लाए थे तुम मेरे लिए,

चलो ढूँढ़े देती हूँ आख़िर लाए हो क्यूँकि मेरे लिए।

 

64.

ये तुम्हारी स्वस्थ आलोचना प्रियवर,

पहुँचाया इसी ने तो मुझे शिखर पर।

 

65. 

यूँ हर वक़्त बादल से न मंडराया करो,

काली घटाएँ बढ़ कर घेर न ले तुमको।

 

66. 

दर्द बाँटते हो पहले, नहीं देता शोभा

फिर ख़ुद ही दवा बन जाते हो, ये कैसा इश्क़ उफ़्फ़  तौबा।

 

67.

ख़्वाहिशें कुछ अधूरी-सी थी, अब तलक

तुम से मिल हमदम छू लूँगी अब, ज़मीन व फ़लक।

 

68. 

कान्हा से नटखट हो, कभी दिखते माखन चोर

पिया दिल जो चुराया तुमने, हो मेरे चित्तचोर।

 

69. 

सती बन करूँ तपस्या, पाने की तुम्हें हर जन्म

शिव बन मान की रक्षा, करना ऐ मेरे हमदम।

 

70. 

बाबुल का छोड़ मनभावन आँगन,

पिया का घर आई हूँ बनाने उपवन।

 

71. 

सौंप दी चाबी घर की ये लो,

नहीं करेंगे कुछ भी अब तो हम

सर्दी में भी छूटा पसीना उनका,

मुस्काये बोले मज़ाक़ था ये तो जानेमन।

 

72. 

अजीबो गरीब चलन है, इस ज़माने का

संग-संग चले तो कहे, लैला-मजनूँ

हो दूरी तो पूछे, मु’आमला क्या है

घोल मीठी चाशनी में अन्दाज़ है, भड़काने का।

 

73. 

ज़िंदगी युद्ध न बने, ना हो कोई कभी घमासान

दोस्त बन कर रहना भले ही, पति-पत्नी मिला हो नाम।

 

74. 

चाहे पिया शक्ल भोली-भाली हो, थोड़ी नख़रे वाली हो

नोटों की करती रहे वर्षा, माँ के पैर दबाने वाली हो

चेहरे पर छाई रहे हँसी और मोहक-सी मुस्कान हो

क्या मॉडल है हम किराए पर या सौदा करके लाए हो?

 

75. 

दिल-ए-आईना मिज़ाज है हमारा सुनो पिया जी,

ऐवान-ए-त’अल्लुक़ अच्छे रहें इसे समझा करो जी।

(दिल-ए-आईना मिज़ाज = दर्पण के समान नाज़ुक दिल वाला)

(ऐवान-ए-त’अल्लुक़ = संबंधों का महल)

 

76.

रंग-ए-तलब थी मौसम-ए-समर में बाग़ों में घूमा जाए,

डरते हो काँटों से संग-संग ही क्यूँ न चला जाए।

 

77. 

पति को ख़ूबसूरत पत्नी तो चाहिए,

पर बुद्धिमान नहीं।

 

78. 

पति परमेश्वर मानने का गया ज़माना, बारी है अब मेरी

मानोगे जितनी जल्दी, होगा सफ़र भी तभी तुम्हारा सुहाना।

 

79. 

ख़ुशबू-ए-रूह बन रहो सैंया हमारे दिल में,

वादा रहा हमारा भी महक कभी कम न होने देंगे।

 

80. 

प्यार तुम से है बेइंतहा,

व्रत-उपवास रखना क्या ज़रूरी है

साथ हर हाल निभना चाहिए,

क्या सब को जताना ज़रूरी है

 

81.

 मैं और तुम , तुम और मैं

मैं से बने हम, फिर बने हमदम।

 

82. 

देखो न जाओ यूँ छोड़ के, जी कैसे लग पाएगा

आया भी है छुट्टी पर, खाना फिर कौन बनाएगा।

 

83.

रिक्तता आ गई है पति-पत्नी के रिश्तों में आजकल,

पहले आप पहले आप का सुंदर दौर गया अब निकल।

 

84.

पति-पत्नी एक सिक्के के ही,

दो पहलू होते है।

 

85.

पति करे जब अवहेलना, होता पत्नी का अपमान

कैसा तुम्हारा पौरुष है, झूठा लगता तुम्हारा मान-सम्मान।

 

86.

तमस् हर ओर मन कोमल सरीखा,

अक्सर हो जाता दुनियां से बैरागी

मन की डोर ज्यों बँधती पिया संग तो देखो,

कैसे होता मन फिर से अनुरागी।

 

87. 

जो मन के तारों को बिन कहे छू जाए,

प्यार भरा दिल उस हमसफ़र से हमेशा साथ निभाए।

 

88. 

रिमझिम बूँदो की नमी को,

नयनों की पलकों में छिपा लेती हूँ

पत्तों से छनती सूरज की किरणों से.

भीगी ज़ुल्फ़ों को छिटक उन को लुभा लेती हूँ।

 

89. 

भावुक अंतहीन सिलसिलों को ढूंढता फिरता,

ये आवारा मनमौजी मन

हर पल हर क्षण हर लम्हे में ढूंढें,

पी संग बीते अपने खोए पल छिन।

 

90. 

उर में नव कोमल प्रीत भरे गीत अधरों पर आये,

हर्षित मन हो व्याकुल पी से मिलने की आस जगाये।

 

91. 

मन ही तो है कभी रुठ जाता है,

तो कभी आईने-सा टूट जाता है

सुबह से शाम तलक उनकी मोहक मुस्कान के लिए,

जतन पर ख़ूब लगाता है।

 

92. 

ज़िंदगी काश फिर उनसे पहली जैसी मुलाक़ात हो,

कुछ लिख सकूँ

लिखे पुराने हुए प्रेमपत्रों के उन पन्नों को,

संग उनके ही फिर पढ सकूँ।

 

93.

 हर काग़ज़ मोहब्बत के रंग से बस स्याह रंगा हो,

पिया की माला में मोती बनने का ख़्वाब भी पूरा हो।

 

94. 

कुछ हसीन सपनें, कुछ ख़्वाहिशें और कुछ चाहतें

लरज़ते लबों पर यूँ समेटने को आतुर हो करे सजदे।

 

95. 

पति-पत्नी का ये सुंदर नाता जन्म से नहीं होता,

ये तो जन्म-जन्मांतर का नाता है, ईश्वरीय ही है होता।

 

96. 

रूह में तेरी मैंने ख़ुद को यूँ समा दिया,

खुदा तेरी इनायत ने ही ये करिश्मा है किया।

 

97. 

टूटते गिरते तारों को अपनी पलकों पर दी पनाह,

ऐसे नायाब नज़ारे संग तुम्हारे देखने की थी चाह।

 

98.

दिल के अंदर झाँक के देखा मंज़र,

पिया सलोने बसे थे उसके अन्दर।

 

99. 

तुम हमसफ़र बनो दिल ने,

दिल से की थी ये फ़क़त आरज़ू

और सच्ची मोहब्बत थी हमारी,

खुदा ने हो शामिल चुपचाप करवाई फिर गुफ़्तगू।

उम्मीद करती हूँ कि Husband की तारीफ में शायरी कहने का एक भी मौका अब आप नहीं छोड़ेंगी। अपनी पसंदीदा शायरी मेरे साथ Comment Section में Share करना न भूलें।

Archana Gupta