गर्व की बात है कि हमारे देश के लोगों ने इतनी तरक्की कर ली लेकिन जिस मिट्टी से इसका जन्म हुआ, उसे भूल जाना तो ग़लत होग। जी हाँ, मैं उसी सुकून वाले गांव पर दो शब्द आपके साथ यहाँ Share कर रही हूँ। 

क़ामयाब होने के लिए शहरों में बस जाना आम बात है लेकिन कभी-कभी उस गांव का प्यार शायरी में झलक ही जाता है। 

मैंने अपने इस संकलन में गाँव की यादों पर कविता के साथ-साथ Motherland Captions को भी शामिल किया है, जिन्हें आप किसी के भी साथ साझा कर सकते हैं।    

गांव पर दो शब्द | Captions In The Memory Of LAND

आइए गांव की मिट्टी पर शायरी पढ़ना शुरू करते हैं –

1.

 गांव की गलियां कितनी मोहक होती हैं,

 हरियालीयों के बीच जैसे जन्नत होती है।

 

2.

रहन-सहन निराला है,

 गांव सबसे प्यारा है

 कुदरत संग जीने का,

 गांव ही सबसे न्यारा है।

 

3. 

 खुश किस्मत हैं,

वह लोग जो गांव में रहते हैं

 दिखावे से दूर,

प्यार में जीते हैं।

 

4. 

 गांव की ताज़ी हवा से अच्छी,

कोई दवा नहीं I

 

5. 

वह गांव की गलियां,

 गिल्ली डंडे की रंगरलिया

 हमजोली संग हम उड़ाते धमाचौकड़ियाँ।

 

6.

 घनेरी-घनेरी जंगल में,

 रात में जगमगाते जुगनू

 यह सुंदर दृश्य हमें,

 गांव के सिवा मिलेगा कहां I

 

7.

 तीज त्यौहार में खुशियां मनाते हैं,

 हंसी ठिठोली के बीच शादी ब्याह रचाते हैं

 गांव में जश्न मनाने का अंदाज ही अनोखा है I

 

8.

 गांव हमारी आन है,

गांव हमारी जान है

गांव ही हमारी शान है,

 गांव से ही हमारी पहचान है।

 

9.

 कुदरत ने गांव को इतना समृद्धि क्यों बनाया है,

 क्योंकि गांव ने कुदरत को अपनाया है I

 

10.

 भंग का रंग मिल जाता है जब,

गांव की होली में मज़ा बहुत आता है तबI

 

11. 

 गांव की होली होती न्यारी है,

सुबह कीचड़ से नहाने की बारी आती सबकी है

शाम होते ही श्वेत लिबास में,

अबीर संग बाहर निकल आते हैं सभी।

 

12. 

गांव हमारा प्यारा है,

गांव हमारा न्यारा है

गांव से ज़्यादा अपना,

कोई न हमारा हैI

 

13. 

सुबह-सुबह जब सूरज उगता है,

ताल-तलैया पर किरणों संग खेला करता है

गांव का यह दृश्य बहुत मोहक लगता है।

 

14.

गांव में उगते मोटे अनाज,

 ज्वार, बाजरा, मक्का है खास

इनसे बनती रेसिपी का अनोखा अंदाज़,

एक बार खा ले जो नहीं भूलते इसका स्वाद।

 

15. 

मटकी में उफनता दूध,

चूल्हे पर बनती रोटी खूब

 गांव के इस भोजन को खा,

मिटती मन की भूख।

 

16.

गांव की गलियों में है हलचल,

नदियों की लहरों में है कल-कल

गांव के जीवन में रस है पल-पल।

 

17. 

गांव में बच्चे गवाले बन गाये चराते हैं,

जंगल में सैर कर मीठे फल खाते हैं

प्रकृति की छटा का लुत्फ़ खूब उठाते हैं।

 

18.

सरसों के साग संग मक्के की रोटी,

साथ में बड़ी ग्लास में होती लस्सी

यह स्वाद मेरे गांव में है मिलती।

 

19.

गांव के खेतों में खाने का मजा ही निराला है,

जो आनंद नहीं Restaurant में आने वाला है।

 

20. 

प्याज संग सुखी रोटी से ही,

भूख मिट जाती है गांव में और

शहर के रेस्टोरेंट में अनेकों पकवान,

खाकर भी मन तृप्त नहीं होती है।

 

21.

बाज़ार के कई फल मैंने खाए हैं,

पर मेरी लालसा को कम नहीं कर पाए हैं

गांव के पेड़ से तोड़ जो फल मैंने खाए हैं,

वही मेरी जिव्हा को शांत कर पाए हैं।

 

22. 

पूरब हो, पश्चिम हो, उत्तर हो, दक्षिण हो,

ग्राम की एक ही परिभाषा है

प्रकृति सुंदरता से लिपटी,

कुदरत की अनुकंपा है।

 

23. 

 गांव का गुड़,

भले काला होता है पर

उसका स्वाद,

चॉकलेट से प्यारा होता है।

 

24.

 आज भी गांव में अतिथि देवो भवः है,

भले चटनी रोटी खिलाते हैं पर

दिल से सम्मान देते हैं।

 

25.

 वाह कितनी सुंदर बात है,

 गुड़ और पानी खास है

 गांव में मेहमान के स्वागत में,

 गुड़ और पानी देने का रिवाज़ है।

 

26.

गांव के काले-काले गुड़ से,

बनते मीठे-मीठे पकवान

उसमें खास है चावल गुड़ से बनी,

रसियाओ खीर समान।

 

27.

गांव संस्कृति का ख़ज़ाना है,

सम्मान देने का यह बहाना है

अतिथि घर जो आए,

पाँव पखार आराम दिलाना है।

 

28. 

गाँव के ताज़े-ताज़े गन्ने के ताज़े-ताज़े गुड़,

जिसकी मिठास मुँह में घुलती है

जुबां को मीठी, तन को स्वस्थ और

मन को तृप्त करती है।

 

29. 

पगडंडी पर चलते जाओ,

थक जाओ तो पेड़ों के नीचे बैठ जाओ

भूख लगे तो फल तोड़ खाओ,

प्यास लगे तो नदी से प्यास बुझाओ

गांव का यह सफ़र भी सुहाना होता है।

 

30.

ऊंचे-ऊंचे पहाड़,

खुले-खुले मैदान

दूर-दूर तक फैली नदियां,

गांव की ये है सारी खूबियां।

 

31.

सरसों के पीले-पीले फूल,

 दूर-दूर तक फैली है,

 प्रकृति ने अपनी अनुकंपा,

 जैसे मेरे गांव को ही दे दी हैं।

 

32.

कुदरत की छटा अद्भुत है

 गांव में प्रकृति ही जैसे स्वर्ग है।

 

33.

 ऊंचे-ऊंचे वृक्षों की डाली उस पर बसेरा पंछियों ने हैं डाली,

 रंग-बिरंगे पक्षियों की चहचाहट से गुंजयमान होती गांव हमारी।

 

34.

 पैसा कमाने बाहर हम जाते हैं

 पर सुकून के पल ढूंढने गाँव ही हम आते हैं।

 

35. 

 मीठे-मीठे फल,

 ताजी-ताजी सब्जियां,

 सब अपने ही खेत की हैं मेहरबानियां।

 

36.

 मेहनत से हम डरते नहीं,

 मुश्किलो से हम लड़ते हैं,

 गांव के बाशिंदे हैं हम,

 प्यार से सब रहते हैं।

 

37. 

 प्रकृति संग उठना प्रकृति संग सोना,

गांव में प्रकृति संग तालमेल बिठाना जिंदगी है जैसे जीना।

 

38.

 गांव में छत पर सोना भाता है,

 प्रकृति की गोद में होने का आभास कराता है।

 

39.

खुला आसमान ऊपर है,

 नीचे खुली धरती,

 बीच में निहारते मेरे नैन,

 चांद सितारों की खूबसूरती।

 

40.

 पूस की रात में बिखरती चांदनी,

चंद्रमा की खूबसूरती को और बढ़ाती है,

छत पर बैठ निहारने को मुझे गांव बुलाती है।

 

41. 

 प्रातःकाल की किरणों संग उड़ते पंछी,

कोई गीत गाते हैं,मानो जैसे भोर में उठ जाने का संदेश,

ग्रामवासीयों को  सुनाते हैं।

 

42.

 ग्राम की गलियां अमवा की टहनिया,

उस पर बैठी कोयलिया मधुर गीत गाती है,

 जो मेरे कर्णो को भाती हैं।

 

43. 

काली-काली रात में चमचमाते जुगनू की टोली,

झरोखे पर बैठी निहारती गांव की गोरी।

 

44. 

जब भी बादल गरजता है मेरे गांव के मोर नाचा करते हैं,

खूबसूरत पंखों को फैला बहुत ही इतराया करते हैं,

बारिश में भीग किहुँ-किहुँ शोर मचाया करते हैं।

 

45. 

गांव की लहराती फसलो पर सरसराती हवाएं,

मन को शांत कर जाती हैं I

 

46. 

 गांव की मिट्टी में होती खुशबू पहली बारिश में उमड़ जाती है,

जो तन और मन दोनों को पुलकित कर जाती है।

 

47.

 सुंदर-सुंदर परिंदों का खजाना है,

गांव के जंगलों में जाने का या खूबसूरत बहाना है I

 

48. 

 नीम के नीचे बैठे निबोलिया चुना करते हैं,

च्चे गांव में वृक्षों के नीचे बैठे गोलियां खेला करते हैं I

 

49.

 जंगलों का राजा है, नदियों की रानी,

गाँव हमारी कुदरत की है दीवानी I

 

50.

 ऊंचे-ऊंचे पर्वत है,

 ऊपर नीचे जंगल,

 बीच में कलकलाती झरने,

 गांव की प्यास बुझाती है।

 

51.

 स्वच्छ जल, स्वच्छ हवा, स्वच्छ भोजन,

है एक दवा, ग्रामीण जीवन में महत्व हैं बहुत इसका।

 

52. 

ग्रामीण जीवन में अवसाद नहीं रहता,

क्यूंकि प्राकृतिक दृश्यों से मन आनंदित रहता है,

और तन स्वच्छ वातावरण में स्वस्थ रहता है I

 

53. 

 पेड़-पौधे,लताएं, पशु-पक्षियाँ मन को भाए I

 ग्रामवासी प्रकृति के रक्षक कहलाये।

 

54. 

ग्रामीण लोग एक दूसरे को जानते हैं,

ना जाने उनकी भी मदद करने का मौका कभी नहीं खोते हैं I

 

55.

 दादा-दादी प्यारे हैं,

 नाना-नानी न्यारे हैं,

 जब बैठ जाते बच्चों संग मुंडेर पर,

 गांव की शोभा बढ़ाते हैं।

 

56. 

 जाने क्या बात होती है,

 गांव की हवा कुछ खास होती है,

 सुबह जल्दी उठना रात में जल्दी सोना,अपने आप होती है।

 

57. 

 गांव की गलियों में कुछ एहसास होती है I

 हंसी ठिठोलीयों के बीच दिन व रात होती है।

 

58. 

 रात होते ही जगमगा उठते हैं तेल की ढ़िबरी,

उस मंद-मंद रोशनी में ही गुजर जाती है गांव की सारी जिंदगी।

 

59. 

गगरी से पानी छलकत जाए,

 गांव की गोरी पनघट से जब पानी लाए।

 

60. 

 पशुचरावन चले हैं  गांव के ग्वाले,

 कांधे पर रोटी की पोटली डाले,

 मित्रों की टोली में जाते हंसते गाते।

 

61. 

 यूं तो गांव में झोपड़ी होती है छोटी,

पर वहां प्यार दुलार की कमी नहीं होती।

 

62. 

ग्रामीणों के दिल में सुकून बहुत होता,

क्यूंकि किसी लालच से परे अपना जीवन प्रकृति की सेवा में लगाते हैं।

 

63. 

 गांव में सर्दी का भी अपना मजा है,

घर के आंगन में आग जला चार लोगो संग ठंड का मजा लेने का अतुल अंदाज है।

 

64.

कल-कल करती नदियां,

 झर-झर करते झरने,

ऊंचे-ऊंचे पेड़ों पर लहराती फूलों की टहनियां,

यह दृश्य गांव की सुंदरता पर चार-चांद लगाते हैं।

 

65. 

अनोखे-अनोखे पशु-पक्षियों से भरा है मेरा गांव,

देख जिन्हें लगता है, कुदरत ने जैसे की चित्रकारी है।

 

66. 

गांव के लोकगीत का अपना रस है,

शोर से दूर मधुरता से पूर्ण, अपने स्तर में ही अनोखा है।

 

67.

 ग्रामीण लोग त्योहार हो या शादी ब्याह या हो कोई जशन,

मिलकर लोकगीत गाते और नित्य कर मन बहलाते हैं।

 

68. 

 शुद्ध हवा,शुद्ध जल,शुद्ध अनाज,

मिलता मेरे गांव में शुद्ध विचार।

 

69. 

 गांव में सब मिलजुल कर रहते हैं,

सुख हो या दुख मिलकर बांटा करते हैं I

 

70. 

 दादा बैठे चौपाल पर रंग जमाए रहते हैं,

दादी गांव की महिलाओं संग महफिल बनाए रहती हैं।

 

71. 

 गांव में खाट पर बैठी दादी कहानियां सुनाया करती है,

बच्चे चारों तरफ घेरे हां में हां मिलाया करते हैं।

 

72. 

लिट्टी चोखा खाना है, बारिश तो एक बहाना है,

साथ में गांव के शुद्ध घी डाल स्वाद और बढ़ाना है।

 

73. 

फागुन महीने की ब्यार मस्त होती है,

गाँव में पके-पके महुवे की महक मन को मदमस्त कर देती है।

 

74. 

 ग्रामीण जीवन स्वास्थ्य जीवन का है राज, सुबह जल्दी उठना,

जल्दी खाना, रात भी जल्दी सोना, जल्दी खाना, यही तो है वो स्वास्थ्यवर्धक बात।

 

75. 

 गांव में महिलाएं सूरज उगते- उगते चूल्हे चौके में जुट जाती है,और

सूरज ढलते-ढलते सारे काम कर स्वतंत्र हो जाती है।

 

76.

 गांव के काले गुड़ में सेहत की भरमार है,

रोज खाने के बाद थोड़ा खाना पेट के लिए वरदान  हैं।

 

77. 

 गांव का काला गुड़ जो होता है

 वह रसायनों से दूर होता है,

स्वास्थ्य व स्वाद से यह भरपूर होता है।

 

78. 

 गुड़ खाना सेहत के लिए अच्छा होता है,

खून बढ़ता फेफड़ा भी स्वच्छ होता है,

 इसलिए गांव का गुड़ केमिकल से मुक्त सर्वोत्तम होता हैं।

 

79. 

ढ़िबरी की लौ कुछ कहती है

 अंधेरी गांव में रहती है,

 पर जीवन की गाड़ी इसी से चलती है।

 

80. 

 खुश हो जाता है रवि भी,

 गांव की आभा देख,कही गायों की

टोली तो कही पखेरुवो की मीठी बोली।

 

81.

 पीले-पीले सोनल के फूल बिखरे हैं देहात की धरती पर,

 हवाओ संग क्रीड़ाए करती बीज,रुनझुन-रुनझुन बजती जैसे बजती पायल।

 

82. 

मुझे याद आता है वह पीपल का वृक्ष, धूप की तपिश को कम करता है,

सदियों से खड़ा है हमारे गांव में, जैसे उसने लिया गांव का पहरा हो।

 

83.

वो नीमवा का पेड़, वह काका-काकी की बोली,

वो बच्चे चुनते निबोली,मुझे याद आती है गांव के कागा की बोली।

 

84.

 ताड़ के ऊंचे-ऊंचे वृक्षों के पत्तों से जब फिजा टकराती है,

 फड़फड़ाहट की ध्वनि जैसे हमें डराती है,

पर ग्राम वासियों को यह आवाज जाने क्यों भाती हैं।

 

85.

 ग्रामीण लोगों में जैसे कोई बात है,

गगनचुंबी वृक्षों पर भी चढ़ते हैं  ऐसे जैसे दौड़ लगाने की बात है।

 

86.

 गांव में अक्सर चौपाल लगते हैं,

बरगद के बूढ़े वृक्षों के नीचे,

 आपस में बतियाते हैं सब सुख-दुख की बातें बैठे-बैठे।

 

87. 

 नहीं जरूरत किसी खिलौने की

 नहीं जरूरत इंटरनेट की,

ग्रामीण बच्चे तो खेले मिट्टी संग बनते जैसे शिल्पकार है।

 

88. 

 ग्रामीण खेलों का जो मजा है नहीं कहीं और है,

गिल्ली डंडा हो या गोबर डंडा,

या हो पुराना पहिया समूह में खेला करते हैं खूब मौज में जिया करते हैं।

 

89. 

 कड़ी धूप में कड़ी मेहनत कर जब बैठते हैं पीपल की छांव में,

 चटनी संग सूखी रोटी खाते हैं,

 फिर भी शुक्रअदा प्रभु की करते देहात में।

 

90. 

 गांव में जो मिलता है मिलता और कहीं नहीं,

वा-पानी खान-पान, जितने शुद्ध मिलते हैं

उतने शुद्ध और कहीं नहीं।

 

91. 

जहाँ हर खुशियों में मिलकर जशन मनाते हैं,

हर दुःख मिलकर निपटाते हैं,

कही और नहीं वो गाँव मेरा प्यारा हैं।

 

92. 

सीढ़ीनुमा खेती हो या खेती हो मैदान में,

उपजाऊ मिट्टी से भरा मेरा गांव महान है I

 

93.

ऊंचाई पर घर हो या घर हो ढलान में,

रोशनी से भरा दिन हो या अंधियारी में दीप जले रोशनदान में,

सुंदरता से लिपटा  मेरा गांव सुन्दर दिखता सुबह और शाम में।

 

94. 

 गांव में मेरे नदियां हैं, नदियों में चलती नाव है,

इस पार से उस पर जाना मुश्किल नहीं आसान है।

 

95. 

 लोगों को लगता है गांव में अभाव बहुत है,

पर उन्हें क्या पता,

जैवविविधता से पूर्ण असली खजाना तो है गांव में।

 

96. 

 ग्रामीणवासी कृत्रिमता से दूर वास्तविकता में जीते हैं,

तड़क-भड़क से दूर सादा सरल होते हैं।

 

97. 

 ग्रामीण वासियों में पारस्परिक सहयोग ज्यादा होता है

,रिश्तेदारी में घनिष्ठता अधिक औपचारिकता का अभाव होता है।

 

98. 

 ग्रामीणों के गीत में न सुर होती है न तो ताल,

फिर भी उसमें एक मधुर लय होती है,

जिसके बिना हर ख़ुशी अधूरी होती है।

 

99. 

 आम के बगीचे में हम बच्चे धावा बोलते थे जब,

एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर जा इतराया करते थे,

मानो गांव के सारे बंदर उधम मचाया करते थे।

उम्मीद करती हूँ कि गाँव पर अनमोल वचन पढ़कर आपकी यादें ज़रूर ताज़ा हुई होंगी। Comment Section में मुझे ज़रूर बताएं कि कौन-सी शायरी आपको सबसे ज़्यादा पसंद आई।

Leechetna