कृष्ण प्रेम पर शायरी मन को भाव विभोर कर देती है और आत्मिक शांति का एहसास कराती है।
सही अर्थों में अध्यात्मिक प्रेम और प्रार्थना की झलक कान्हा जी पर शायरी में देखने को मिलती है।
इसलिए मैंने इस विचारों से पूर्ण संकलन में बहुमूल्य कृष्ण भक्ति पर शायरी को शामिल किया है, जिन्हें आप कभी भी Share कर सकते हैं।
कृष्ण प्रेम पर शायरी | Poems To Feel The Eternal PEACE
आइए द्वारकाधीश पर शायरी पढ़ना शुरू करते हैं –
1. तेरे अनेक है नाम, कौन से नाम से बुलाऊँ मैं कहूँ राघा और दौड़ा चला आये, मेरा श्याम। |
2.
कृष्ण की लीला अपरंपार, हाँथ में बंसी सुनहरी माथे पे मोरपंख सतरंगा। |
3.
साज-सिंगार मनमोहक, मेरे राघेश्याम का। |
4.
साज-सिंगार देखते ही, मन मेरा झूम उठा मानों गोपियों की तरह, बदन मेरा झूम उठा। |
5.
माखन की गठरी तोड़ के, गोपियों के वस्त्र चोरी करके छिपा कान्हा कहीं, पेड़ की डाल पे। |
6.
तू नटखट, तू नंद का लाल सांवला सलोना, मेरा कन्हैया। |
7.
श्याम तेरा रंग सांवरे, देखते ही सबको कर दे बावरा। |
8.
मोरपंख का नसीब ही बदल गया, जब तेरे मुकुट में उसे स्थान मिल गया। |
9.
प्रेम का एक ही उत्तम नाम, राघा-श्याम। |
10.
बांसुरी के सुर से झूम उठी, श्याम के सुर से नगरी झूम उठी। |
11.
राघा-श्याम का उत्तम बंधन, प्यार का है उत्तम समीकरण। |
12.
कृष्णा ही कृष्णा हर ओर है, मेरे दिल का तो वो चित्तचोर है। |
13.
मैं दासी तेरे चरणों की, मैं प्यासी तेरे मधुर सुरों की। |
14.
उसके नाम के उच्चारण से, दुःख-दर्द मिट जाये श्याम के दर्शन मात्र से, मन प्रफुल्लित हो जाये। |
15.
वो किसी में भी फर्क नहीं रखता, राजा हो या रंक मेरा श्याम अपनी कृपा बयाये रखता है। |
16. नटखट मेरा श्याम, गोपियों संग रास रचाय गैया चराये बंसी बजाये। |
17.
राधाकृष्ण की प्रेम गाथा, अमर हो गई मिलन न हुआ लेकिन, जुदाई में भी राधा कृष्णमय हो गई। |
18.
न मिलकर भी एक हो गये, राधा-श्याम राधेश्याम हो गये। |
19.
कितनी सदिया बीत गई, राधा-कृष्ण सा प्रेम किसी ने किसी को न किया। |
20.
बैजन्तीमाला गले में सजे, मोरपंख मुकुट में सजे सिंगार में श्याम सबसे सुंदर लगे। |
21.
श्याम वर्ण में सबसे सुंदर, मेरा कृष्ण। |
22.
कृष्ण के नाम के, एक उच्चारण से पूरा दिन शुभ हो जाता है मेरा। |
23.
सुबह उठते ही, शाम को सोने से पहले जिसके नाम की माला जपु, वो कोई और नहीं वो है मेरा कान्हा। |
24.
गोकुल, मथुरा, वृज, द्वारका जैसे स्थल की मिट्टी भी कृष्ण की ऋणी हो गई जब कृष्ण के चरणों की धूल, बनी वो पवित्र हो गई। |
25.
कभी भेद नहीं किया, हो रुक्मणि, सत्यभामा, द्रोपदी, गोपियों और 16 हज़ार पटरानिओ को कभी निराश नहीं किया। |
26.
रुक्मणि के एक खत से दौड़े चले आये, विवाह के बंधन में बंधने बिन बारात मेरे कान्हा चले आये। |
27.
बहुत दौड़ाया गोपियों को, माखन चुरा के सताया गोपियों को माँ से शिकायत करने पर, अखिल ब्रह्मांड मुँह में दिखाया माँ यसोदा को। |
28.
भले ही जन्म उसका, जेल में हुआ पर वो कैदी नहीं जान लेता है मन के सारे वो भेद, दिल का भेदी है वो केदी नहीं। |
29.
कल्पवृक्ष की कहाँ मुझे ज़रुरत, मेरी कल्पना को उड़ान देने कृष्ण के मुकुट का मोरपंख काफी है। |
30. सप्तरंगी मोरपंख ने क्या क़िस्मत पाई है. मोर के शरीर से अलग होकर स्थान कृष्ण के सीर पे पाया है। |
31.
मीरा की भक्ति का प्रमाण तो देखो. ज़हर के प्याले को चरणामृत में बदल दिया विष को भी अमृत कर दिया मेरे कृष्ण ने। |
32.
क्या-क्या लिखुं श्याम तुझपे, ग़ज़ल, कविता या कहानी संसार के सारे पन्ने और स्याही, कम पड़ जाए जब में बैठूं “कृष्णा” लिखने। |
33.
मीरा-सा महान भक्त नहीं, सुदामा-सा महान दोस्त नहीं कृष्णा के नाम के बिना, गुज़रता दिन नहीं। |
34.
जन्म और मृत्यु के बंधन से, श्याम भी नहीं बच पाया खुद ईश्वर होते हुए, वो इंसानरुपी संबंधो की माया से नहीं बचपाया। |
35.
जब कोई राह न दिखें, तेरा नाम ले लेता हूँ अगर मुसीबत में फंस जाऊं तो, कान्हा को याद कर लेता हूँ। |
36.
कान्हा के नाम की, शक्ति तो देखों विचारो में छुपे दुश्मन को भी, भागना पड़ता है। |
37.
मैं हूँ अगर संकट में कान्हा, तुझे करती हूँ मैं याद तू ही दिखाना मुझे मार्ग। |
38.
जिसके हाथ में नाज़ुक बंसी भी जचती है, जिसके हाथ में सुदर्शन चक्र भी जचता है ऐसा मेल मेरे कृष्ण का ही हो सकता है। |
39.
पूरे ब्रह्माण्ड का आधिपत्य जिसके पास है, वो खास कोई नहीं मेरा श्याम है। |
40.
नित दिन करू, मैं तेरी आराधना कृष्ण के चरणों में ही, मेरे काशी और मथुरा। |
41.
छप्पनभोग से भोजन की थाली सजाई, नित दिन नए वस्त्रों और सिंगार से कान्हा की मूरत सजाई। |
42.
मनमोहक मोहन को, मोहन थाल की मिठाई बहुत ही प्रिय है। |
43.
गोरी थी राधा और श्याम था कन्हैया, सांवली सूरत ने जीत लिया मन हर किसी का। |
44.
कितना अदभुत दृश्य है, चटोरे कान्हा को माखन खाते देखने जो अवसर है। |
45.
तुझे पालने में झुलाना, तुजे लोरी गा के सुलाना कान्हा तेरी दासी बनके, संसार को है भुलाना। |
46.
मीरा-सी मैं भक्ति में, मग्न हो जाऊं हर एक जन्म में कान्हा की, सेवा का अवसर मैं पाऊं। |
47.
अनेक नाम से संसार तुझे जाने, अनेक क़िरदार से संसार तुझे पहचाने। |
48.
कान्हा कहूँ, गोविंद कहूँ, श्याम कहूँ, मोहन कहूँ हे कृष्ण किस नाम से तेरी माला मैं जपूँ। |
49.
राधा श्याम की बंसी की दीवानी, सुन आवाज़ बंसी की खुद को नहीं रोक पाती। |
50.
जग में सबसे महान, मेरे आराध्य श्याम। |
51. भक्त की पुकार सुन दौड़े चले आये, भक्त के आँसू पोंछने किसी भी रूप में प्रगट हो जायें। |
52.
ये तो पिछले जन्म का कर्म है, जो इस जन्म में कृष्ण की भक्ति करने का अवसर प्राप्त हुआ। |
53.
पृथ्वी के कण-कण में हर जीव में, कान्हा का वास है। |
54.
बाल रूप में माँ को बड़ा सताया, नंद के लाल ने नटखटपने से सबको रिझाया। |
55.
यसोदा का लाल, बड़ा नटखट बड़ा शरारती। |
56.
शेषनांग को भी झुकना पड़ा, कान्हा के इशारे पर पीछे हटना पड़ा। |
57.
कनिष्ठा पे गोवर्धन उठाया, इंद्रा के कोप से सबको बचाया। |
58.
जन्म देने वाली माँ जिसकी देवकी, पिता वासुदेव जन्म हुआ कारावास में, फिर भी कृष्ण से बढ़कर कोई भी नहीं पूरे संसार में। |
59.
युद्ध नहीं धर्म युद्ध था, युद्ध के बीच में कृष्ण ने अर्जुन को दिया बोध था, जिसे संसार ‘श्रीमद्भागवत गीता’ से जानती है। |
60.
कृष्ण जी द्वारा कही गई, श्रीमद्भागवत गीता आज के युग में भी उतनी ही उपयोगी है। |
61.
कृष्ण जी का पूरा जीवन संघर्षमय था, फिर भी सदैव उनके चेहरें पर स्मित था। |
62.
संघर्ष से पीछे हटे, वे कृष्ण जी नहीं। |
63.
गीता जी के माध्यम से पूरे संसार को, कर्म फल का बोध दिया कृष्ण जी ने। |
64.
ढूंढने से भगवान मिलते हैं, पूरा संसार छान लो कान्हा तो सिर्फ दिल में बस्ते हैं। |
65.
कृष्ण से अधिक कष्ट, किसी को नहीं मिले ज़िन्दगी भर फिर भी कृष्ण के चेहरे से, स्म्रित कम नहीं हुआ ज़िन्दगी भर। |
66.
कृष्ण का पूरा जीवन ही, प्रेरणा स्रोत है। |
67.
त्रिवेणी संगम के किनारे, पेड़ की छाँव में पैर में घाव थे गहरे, तब अंतिम सांस ली थी कृष्ण ने। |
68.
राधा जी को उम्र भर शिकायत रही के कान्हा जी, बरसाना से जाने के बाद लौट के नहीं आए लेकिन कान्हा जी तो राधा जी के हृदय से, कहीं दूर कभी गए ही नहीं थे। |
69.
भगवान विष्णु के आठवें अवतार, कृष्ण ही कृष्ण मेरा सारा संसार। |
70.
प्रेम को अगर दो शब्दो में लिखना हो तो, ” राधा-कृष्ण ” दो शब्द काफी हैं। |
71.
जीव प्रेमी, प्रकृति प्रेमी, दयालु जितने गिनवाना चाहे उतने गुण सारे मेरे कान्हा में है। |
72.
सिर्फ मूरत देखके ही मन, आनंदित हो जाए ऐसी मूरत मेरे कान्हा की है। |
73.
द्वारका में पैर रखते ही, आज भी मेरा मन कृष्णमय हो जाता हे। |
74.
समुन्दर किनारे बसा शहर द्वारका, आज भी मंदिर की लहराती ध्वजा में दर्शन होते हे द्वारकानाथ के। |
75.
कृष्ण भक्ति में डूबे भक्त को, संसार की क्या लालसा? |
76.
कृष्ण भक्ति में लीन भक्त संपति, क्या पूरा जीवन न्यौछावर कर दे। |
77.
राधा का प्रेम परिपूर्ण, न होकर भी संपूर्ण हो गया। |
78.
राधा जी ओर कृष्ण जी का, प्रेम विवाह के बंधन में बंध न सका लेकिन पृथ्वी के अस्तित्व तक, उनकी प्रेम गाथा को याद किया जायेगा। |
79.
वो प्रेम ही क्या जिसमे परीक्षा न हो, मिलन से कहानी पूर्ण होती है बिछड़ने के बाद ही, अधूरी कहानी आगे बढती है। |
80.
जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होना हो तो, भक्ति के मार्ग पर निरंतर चलते रहना होगा। |
81.
कृष्ण को कहाँ अब झूले की आवश्यकता है, ये तो भक्त का भाव है जो उनके बालगोपाल रूप को, झूले में झुलाया जाता है। |
82.
पश्चिम हो या पार्श्व संस्कृति, हर एक संस्कृति में कृष्ण जी पूजनीय है। |
83.
कितने युग बीत गये, कितने साल बीत गये और आगे भी कितने ही युग और साल बीत जायें, कृष्ण जी थे है और सदैव रहेंगे। |
84.
केशव, माधव, मोहन, कान्हा, मुरलीधर उनके अनेक नाम है और हर एक नाम में मधुरता है। |
85.
जब जमुना के तट पर, राधा जी और कान्हा जी रास खेला करते थे तो, पूरा गाँव अपना कामकाज छोड़ के उनके रास को देखने उमड़ पड़ता था। |
86.
है प्रभु आप आकर मेरे मन में रहिए, मेरे मन को ही गोकुल को वृंदावन समझ के उसमें निवास कीजिए। |
87.
काश में बांसुरी बन जाऊं, कान्हा के होठों के स्पर्श का सौभाग्य पाऊं। |
88.
कृष्ण के रंग में रंग के मन, फूलों-सा बन जाता है। |
89.
भक्त के भाव से भगवान मिशरी को, अधिक मिठास से भर देते है। |
90.
कृष्ण को भोग लगता है छप्पन भोग का, उस छप्पन भोग के प्रसाद में भगवान कृष्ण का आशीर्वाद मिलता है। |
91.
बिना द्वारका गये, बिना गोमती घाट में नहाए आपको आपकी यात्रा का फल, पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं होता। |
92.
चारों धामों में घूम के देखा, हे कान्हा तुझे हर जगह ढूँढ़ के देखा कहीं पे भी तू ना मिला, आखिरकार याद आया के दिल के कौने में ढूँढना रह गया। |
93.
आँख बंधकर के भी, कान्हा तू सब देख लेता है तो मेरे आँखों के आँसू तुझसे, हर बार क्यों छूट जाया करते हैं? |
94.
हा याद है मूझे कान्हा तुने कहां था, कर्म कर फल की चिंता न कर लेकिन इस व्याकुल मन को कब तक मनाॐ मैं। |
95.
अनेक रूप लेकर लेता तू भक्त की परीक्षा, अनेक रूप लेकर हरता तू भक्त के संकट। |
96.
कभी मुँह में पूरा ब्रह्मांड, दिखाया माँ यसोदा को कभी युद्ध के बीचो-बीच विराट रूप लेकर, विष्णु रूप के दर्शन कराए अर्जुन को। |
97.
हर युग में अवतरित होकर, असत्य पर सत्य की विजय तूने करवाई है हो अगर निराशा तो उसमें, आशा की ज्योत जलाई है। |
98.
कभी गैया को चराया, कभी सारथी बनके अर्जुन के रथ को चलाया है तू ईश्वर लेकिन फिर भी, कभी अभिमान नहीं जताया। |
99.
परेशानी है तो फ़िक्र न करें, कान्हा सब ठीक कर देंगे रास्ता नहीं दिख रहा तो फ़िक्र मत कर, कान्हा रास्ता अवश्य दिखायेंगे। |
उम्मीद करती हूँ कि कृष्ण प्रेम पर शायरी पढ़कर उनकी लीला में लीन हो गए होंगें। Comment Section में मुझे ज़रूर बताएं कि कौन-सी शायरी आपको सबसे ज़्यादा पसंद आई।