सही हो या गलत, सबको अपने फैसलों का नतीजा खुद ही भुगतना पड़ता है। कर्मों के फल पर शायरी, ऐसी ही कश्मकश पर लिखी गई हैं।

बहुत से लोग कर्म पर अनमोल वचन में खास दिलचस्पी रखतें है, जिससे उन्हें जीवन को बेहतर बनाने की उम्मीद मिलती है। 

अगर आप भी अच्छे कर्म पर कविताएं और Inspirational Thoughts पढ़ने के शौक़ीन हैं तो मेरा यह संकलन आपके बहुत काम आएगा।  

कर्मों के फल पर शायरी | 99 Messages To Keep You INSPIRED

आइये कर्म पर Quotes पढ़ना शुरू करते हैं –

1.

बन जाता है आज सुखद, कल भी सुंदर हो जाता है

अच्छे कर्मों के करने से, ये मन ही मंदिर हो जाता है।

 

2.

अच्छे कर्मों की है निशानी यही, चैन और सुकून खोने नहीं देते

बाधाओं की नदी हो कितनी भी गहरी, हौसले की नैया डुबोने नहीं देते।

 

3.

कहता है कर्म यही तू मुझे करता चल,

अच्छा या बुरा यह तो तुझ पर निर्भर

आने वाले कल में फल उसका ही पाएगा,

जो बीज तूने बोए आज धरा के भीतर।

 

4.

सुख की चाह है सबके मन में, पर अच्छे कर्मों से रखते दूरी

ये कैसे संभव हो सकता जग में, नीम के फल हो जाएं मीठी मिश्री।

 

5.

नेकी करके डाल दो दरिया में, मत सोचो कि कल क्या होगा

अच्छे कर्मों की गति भी अच्छी, निश्चय ही मीठा फल होगा।

 

6.

किनारे पर बैठकर भी वो डरते हैं,

ह्रदय जिनके बुरे भावों से भरे रहे

बीच भंवर में भी निर्भीक खड़े रहे वो,

अच्छे कर्मों को जो जीवन लक्ष्य करे रहे।

 

7.

है गीता का सार यही, नहीं बात ये सुनी कहीं

बुरे कर्म का फल दुखदाई, अच्छे कर्मों से हो जीव सुखी।

 

8.

सुख की अभिलाषा है, है खुशियों की परवाह

हृदय में भले भाव बसा, सत्कर्मों की हो बस चाह।

 

9.

जो शास्त्रों को अपनाए नहीं, करे स्वेच्छा से कर्म सभी

वह सिद्धि को पा सकता नहीं, सुख से कोसों दूर रहे ना पाए परमगति।

 

10.

हर बंधन से मुक्त निर्बाध जो कर्म है,

ईश्वर की दृष्टि में वही सच्ची उपासना

किसी प्राणी को कष्ट ना पहुंचे अकारण,

सदा हृदय में वास करे यह सुंदर भावना।

 

11.

मत सोच कि क्या होगा अगले क्षण,

मत सोच कि क्या साथ ले जाएगा

निर्मल पानी-सी साफ है तस्वीर कर्म की,

जो बोया है वही एक दिन तू पाएगा।

 

12.

कर्म के कितने ही रूप हैं, कर्मों की गति न्यारी

कर्मों के अनुसार मिलता है फल, फिर चाहे राजा हो या भिखारी।

 

13.

अच्छे पथ पर चलते हो तो, बाधाओं से डरना क्या

खाली हाथ आए और खाली है जाना, फिर ख़ज़ानों को यूं भरना क्या ?

 

14.

परिवर्तन ही नियम इस सकल संसार का,

हर दिन कुछ बदलेगा नया होगा अनुभव

कुछ पाकर हर्षाना कैसा-क्या खोने का दुख,

जो आज है तुम्हारा कल किसी और का होगा सब।

 

15.

इस शरीर पर इतराना कैसा,

इसमें कुछ भी तो नहीं हमारा

जल, वायु, पृथ्वी, आकाश व अग्नि से बना,

फिर वापस मिल जाएगा इनमें ही सारे का सारा।

 

16.

जो गुज़र गया उसे बिसरा दो, कल की चिंता में मत रोना

जो है अपना वो वर्तमान है, व्यर्थ ही आज को मत खोना।

 

17.

भला कीजिए या बुरा कीजिए,

इच्छा है आपकी कि क्या कीजिए

नेकी करोगे तो फल मीठा मिलेगा,

बुरे काम का बुरा ही नतीजा लीजिए।

 

18.

दम्भ, घमण्ड, द्वेष, क्रोध और अभिमान,

असत्य वचन और जीवन में अज्ञान

कहते हैं प्रभु श्रीकृष्ण-अर्जुन से,

ये सब आसुरी प्रवृत्ति की हैं पहचान।

 

19.

ना रूप से ना सूरत से ना ही रंग से, 

उस ईश्वर की नज़र में पहचान होती है

जिस सीढ़ी से पाओगे सच्ची शांति मन में, 

अच्छे कर्म ही उसका पहला पायदान होती है।

 

20.

आत्मा अजरअमर और शरीर नश्वर है,

फिर क्या पाने की तृष्णा और क्या खोने का डर है?

 

21.

जिस क्षण मन से “मैं” नामक मेहमान चला गया,

वही क्षण जीवन में सुख शांति का हर सामान दिला गया।

 

22.

अपने अपनों पर वार करूं कैसे,

स्वयं प्रियजनों के प्राण हरूं कैसे 

अर्जुन के व्याकुल विवश मन में,

उमड़े भाव कि आखिर युद्ध करूं कैसे

तब बोले सारथी श्रीकृष्ण, हे अर्जुन ये जानो

युद्ध क्षेत्र है कर्म क्षेत्र एक, अब अपना दायित्व पहचानो।

 

23.

सुख मेरे हिस्से में कम क्यों, क्यों दुखों का कोई हिसाब नहीं

इसी सोच में उम्र गुजारी सारी, पर कर्मों की रखी  किताब नहीं।

 

24.

यहां शाश्वत कुछ नहीं हर चीज़ आनी-जानी,

बस अच्छे कर्म रहते हैं सदा बनकर तेरे नाम की निशानी।

 

25.

गलत मंशा से किया कोई काम कभी फलता नहीं,

बोकर पेड़ बबूल के फल सरस आम का मिलता नहीं।

 

26.

आंधियों में भी उनके दीप जला करते हैं,

जो निस्वार्थ भाव से सबका भला करते हैं।

 

27.

बुरे हों या अच्छे कर्म तुम्हारे, 

हैं भविष्य के दुख सुख ये सारे।

 

28.

जो दिया जाता है जैसा भी जिस भाव से, 

वो लौटकर अवश्य आता है कर्म के प्रभाव से।

 

29.

तुम करते हो भला किसी का, 

वो बदले में बुरे भाव रखता है

मत दुःख मनाओ इस बात का,

कर्म हर एक का हिसाब रखता है।

 

30.

श्रीकृष्ण कहते हैं, फल पाने की चाह ना रख

कर्म से अपने पीछे ना हट, लोभ दंभ की राह ना रख।

 

31.

हार निश्चित है उसकी जो मैदान में उतरा नहीं,

और जीत जता है वो जो भावी परिणाम से डरा नहीं।

 

32.

अच्छे कर्म करना और आसान हो जाएगा,

जब बुरे कर्मों के फल का भान हो जाएगा।

 

33.

मानव होना सरल है, मुश्किल है मानव धर्म

जो सबके हित में सोचें, वही है सच्चा सत्कर्म।

 

34.

मेरा-मेरा यहां सब करें, पर पीड़ा को जाने कौन

फल की इच्छा सब करें, सुकर्म की बारी हो जाते मौन।

 

35.

इंसान की प्रवृति लालसा से भरी,

साथ कुछ जाना नहीं फिर भी दौलत भरी

कुछ अगर सोचा नहीं तो वो कर्म थे,

जब समय आया फल का तो शिकायत करी।

 

36.

कड़वे या मीठे मिलते ज़रूर हैं,

जग में अपने हिसाब से कर्मफल

ये मत सोचो कि बेअर्थ हैं ये बातें,

वो ईश्वर न्याय करता है आज नहीं तो कल।

 

37.

बहता हुआ पानी और इंसान की ज़िंदगानी,

निरंतरता से बनाए रखते हैं अपने अस्तित्व की निशानी।

 

38.

स्मरण रखता है कर्म सब, नाम पता और ठिकाना

समय आने पर फिर देता, कर्ता को अपने उचित नज़राना।

 

39.

कहता है यह गीता का ज्ञान,

सब कुछ जग में नश्वर जान

काया है ये माटी यह सच ले तू जान,

आनी-जानी हस्ती सबकी मत कर तू अभिमान।

 

40.

हृदय में किंचित भय ना रख, ना रख इसमें बुरी भावना

तेरे कर्म ही साथी तेरे, साथ और कुछ नहीं जाना।

 

41.

देते हैं श्रीकृष्ण संदेश, अपना कर्म तू प्राणी कर

ना रख हृदय में ईर्ष्या द्वेष, निभा धर्म तू होकर निडर।

 

42.

तुम सब कुछ भुलाकर मुस्कुराओ,

कोई पीड़ा भी पहुंचाए अगर कभी

तुम अपने कर्म पर ध्यान लगाओ,

अपने किए का फल पाते यहीं सभी।

 

43.

अच्छे विचार अच्छा व्यवहार, सदा ही अपने मन में धार

सुंदर दृष्टिकोण तू रख, सुंदर दिखेगा सकल संसार।

 

44.

नेकी जिनके साथ थी, तूफान से भी वो निकल गए

बुरे कर्मों में रमने वाले, कदम बढ़ाते ही फिसल गए।

 

45.

कर्म ही तय करते हैं, क्या पुण्य-क्या पाप

क्या तुझको पाना है, ये विचारना होगा आप।

 

46.

जिस दिशा में ध्यान रहे, मन वहीं खो जाता है

जैसी संगति में इंसान रहे, वैसा ही हो जाता है।

 

47.

क्या पाएंगे हम जग में, यह कर्मों से तय होना है

 चाहते हैं यदि मीठा फल विशेष, तो उसका बीज ही बोना है।

 

48.

अच्छे कर्म अच्छे संस्कार, भाग्य से जुड़कर नहीं आते

स्वयं कमानी होती है ये दौलत, अवसर कभी मुड़कर नहीं आते।

 

49.

मीठी वाणी से बढ़कर, जग में कोई बोल नहीं

परहित में जो खर्च किया, उस समय का कोई मोल नहीं।

 

50.

स्वार्थ साधकर भलाई नहीं होती,

दम्भ में पुण्य की कमाई नहीं होती

यदि दिखावे के लिए हो तुम सबके,

किसी नज़र से यह अच्छाई नहीं होती।

 

51.

अच्छे काम करने के लिए,

कभी विचारने की ज़रूरत नहीं

यह रंग चढ़ा के रखो मन पर,

कभी उतारने की ज़रूरत नहीं।

 

52.

जो बीत गया उस पर पछताना नहीं,

भविष्य के लिए कभी घबराना नहीं

जो है वो आज है सत्य ये बिसराना नहीं,

नेक कर्म तू करता चल हारकर रूक जाना नहीं। 

 

53.

कोई साथ नहीं रहता सदा, साथ रहते हैं अपने कर्म यहां

परोपकार को अपना ध्येय जानो, इससे बढ़कर ना कोई धर्म यहां।

 

54.

नेकी करने वाले का जीवन, महकता है बनकर के चंदन

बांटते हैं संग जिसके ये महक, वो दुआओं से भर देता है दामन।

 

55.

तन की सुंदरता से ज़्यादा, रखो मन का ध्यान

सुंदर निश्छल मन के अंदर, बसते स्वयं भगवान।

 

56.

विशाल रूप में हो खड़ी बुराई,

बेशक डटकर कौरव सेना-सी 

पराजय फिर भी निश्चित इसकी,

जब अच्छाई के संग स्वयं हो केशव बनकर सारथी।

 

57.

स्वार्थ मन में लेकर, कभी अच्छे काम नहीं होते

निस्वार्थ भाव से करे जो परहित, उस नेकी के जग में दाम नहीं होते।

 

58.

कमज़ोर कभी भी इंसान नहीं, परिस्थिति कर देती है विवश

पर धैर्य जो कभी खोए नहीं, उसे स्वयं हरि मार्ग दिखाते सहर्ष।

 

59.

माना बुरे कर्मों की बदौलत, क्षणिक सुख कभी पा जाओगे

पर विधाता जब बांटेगा फल, जीवन में प्रतिक्षण पछताओगे।

 

60.

भाग्य और कर्म दोनों में एक रिश्ता है,

कर्म के बल पर भाग्य बनता बिगड़ता है

 

61.

जब संशय हो मन में कोई, किस पथ पर कदम बढ़ाने हैं

तब स्वयं से यही एक प्रश्न करो, कड़वे या मीठे कौन से फल पाने हैं?

 

62.

भला किसी का करने से बढ़कर,

जग में कोई पूजा भक्ति नहीं

अच्छाई के सम्मुख टिकती नहीं बुराई,

अच्छे कर्मों से बड़ी कोई शक्ति नहीं।

 

63.

जो कहते हैं भाग्य से हारे हैं, डूबे हुए किस्मत के तारे हैं

वास्तव में कर्महीन हैं वो जन, जो सदा हाथों की रेखाएं निहारे हैं

 

64.

जिसे खुद पर भरोसा था, उसने क़िस्मत बदल डाली

जिसे किस्मत पर भरोसा था, उसके हाथ रहे सदा खाली

 

65.

कर्म कहता है यही करता चल तू नेकी,

ग़लत करे यदि कोई तू देता चल बस माफ़ी

उसकी करनी उसके संग तेरे कर्म हैं संग तेरे,

कर्मों के लेखे-जोखे से कभी होती नहीं नाइंसाफी।

 

66.

आत्मा कभी मरती नहीं, शरीर  चिरस्थाई नहीं

कहें श्रीकृष्ण गीता में, हे प्राणी नेकी के समान कोई कमाई नहीं

 

67.

ना अग्नि से जलती है, ना जल डुबा सकता है

ना शस्त्र छेद सकते हैं, ना पर्वत दबा सकता है

स्वरूप अमर है आत्मा का,

काल भी ना मिटा सकता है।

 

68.

कर्म कहता है विचार कर,

कुछ करने से पहले ग़लत या सही

करने के बाद क्या होगा सोचकर,

विचार करने का कोई मतलब नहीं

 

69.

कुछ करने से पूर्व बात करो स्वयं से,

क्या और आखिर क्यों कर रहे

कर्म करने के बाद बात करो अन्य से,

ताकि सही और ग़लत पर नज़र रहे।

 

70.

कर्म रूपी घोड़ो पर निर्भर, जग में जीवन रथ की चाल 

बनकर कुशल सारथी हे बंदे, हर चक्रव्यूह से मन को निकाल।

 

71.

मन सुंदर तो तन सुंदर, बना अपना हर दिन सुंदर

कर सबके हित यत्न सुंदर, हो जाए ये जीवन सुंदर।

 

72.

उस सुख का कोई अर्थ नहीं,

जिसको पाने में दुख किसी को दिया

उस दुख की क़ीमत बढ़ जाती है बहुत,

जिसे औरों की ख़ातिर तुमने हंस के लिया

 

73.

जब कर्म क्षेत्र की बात चले, केवल नेकी को चुनना

जब धर्म क्षेत्र की बात चले, केवल सच की राह चुनना।

 

74.

बीते हुए पर पछताना नहीं,

फ़िक्र क्या उसकी जो आया नहीं

जो आज है उसको गंवाना नहीं,

जीवन वो क्या जो परहित में लगाया नहीं

 

75.

चक्र समय का रूकता नहीं, सत्य कभी भी झुकता नहीं

अच्छे मन से हों कर्म यदि, बुरा कभी हो सकता नहीं

 

76.

वृक्ष झुक रहे फलों से लदकर, मेघ बरसते जल से भरकर

है सज्जनता की यही निशानी, करते कर्म निस्वार्थ रहकर।

 

77.

नतीजे हों अनुकूल हमेशा, यह संभव सुंदर प्रयत्न करेंगे

यदि खुश होगे परपीड़ा पर, हरि क्यों फिर तुम्हें प्रसन्न करेंगे।

 

78.

हर रात का ज्यों सवेरा है, हर दिन की निश्चित है शाम

जीवन में हर एक कर्म का, तय होता उपयुक्त परिणाम

 

79.

श्रीकृष्ण उवाच – करना है कर्म, बिन विचारे कुछ परिणाम 

अच्छे का अच्छा होना तय है, सच्चा सुख ही होगा तेरे नाम।

 

80.

ना कर सको भला अगर, दिल किसी का दुखाना नहीं

ना दे सको सहारा किसी को, तो ठोकर मार के गिराना नहीं

 

81.

अपनी नेकी का गवाह अपने सिवाय,

केवल भगवान को मानो 

औरों की नजरों में अच्छा बनने की चाह,

अपनी स्वार्थसिध्दि जानो

 

82.

जो पूर्ण नहीं है भावों से, जो नहीं जानता औरों का दुख

वो मनुष्य दूर है निजधर्म से, जो अच्छे कर्मों से रहे विमुख।

 

83.

अच्छे कर्म करने से, मिलता लाभ ही लाभ

ना करने से पहले कोई चिंता, ना बाद में पश्चाताप

 

84.

वो जो जीवन भर सुख को खोजते हैं,

अपने कर्मो को भुला और सब सोचते हैं

वो जो खुद को भुला करते हैं औरों का अच्छा,

जीवनभर के लिए अथाह सुख जोड़ते हैं

 

85.

देर सवेर आज या कल,

पाएंगे यहां सब कर्मों के फल

ना उसको सताओ जो है निर्बल,

कहता है कर्म मत भूलना ये बात

तेरा किया ही भविष्य है तेरा,

कर्म ही हैं तेरे सुख-दुख का धरातल

 

86.

कर्म ही कराते हैं इंसान की पहचान,

 कर्मों के बल से ही भाग्य हो बलवान

अच्छे कर्म ही सुख की कुंजी,

बुरे कर्म बन जाते अपार दुखों की ख़ान

 

87.

किसी के मुख पर मुस्कराहट, 

किसी के होंठों पर हंसी

किसी को सौंप दी अगर, 

तुमने अपने हिस्से की खुशी

 ऊपर बैठकर वो भरता है,

तुम्हारे खाते में सुख समृद्धि।

 

88.

प्रेम में इतनी शक्ति है, 

स्वयं भगवान खिंचे आते हैं

शबरी के झूठे बेरों को,

प्रभु चावसहित खाते हैं

नारायणी सेना दुर्योधन को दे,

माधव स्वयं पांडवों के हो जाते हैं

 

89.

जीतना है तो मन को जीतो, मन में उपजें सभी विचार

मन पर काबू जिसने पाया, जीत लिया पूरा संसार

 

90.

कोई पैमाना ऐसा नहीं, जो अच्छाई को ले माप

अच्छे कर्म ना चाहे गवाह, ये स्वयं छोड़ते अमिट छाप

 

91.

बनना हो तो बनो सहारा, देना हो तो सच्चा साथ

काम किसी के जो कभी आए, बन जायेगी हर बिगड़ी बात

 

92.

समंदर मिला लेता है खुद में,

हर छोटी बड़ी नदी को एक जैसे

सब हो जाती हैं फिर उस जैसी,

कोई पहचाने फिर अलग कैसे

जग में अपनी हस्ती समंदर-सी कर लो,

हर किसी को अपना लें जो खुशी से

 

93.

मत सोच कि अकेले अच्छा करने से क्या होगा,

एक मेरे ही ज़रिए क्या किसी का भला होगा

वो सूरज भी अकेला है और चांद भी अकेला,

सूरज और चांद कब सोचते हैं भला कि एक मेरे ही निकलने से क्या होगा

 

94.

जगत में झूठ है सब कुछ, ये तन मन मोह और माया

कुछ सच्चा है तो कर्म तेरा, जिसने तुझे तुझसे मिलवाया

 

95.

कर्म की गठरी रखनी है कैसी,

हल्की या फिर भारी

ये तो सब कुछ तेरी मर्जी,

है तेरी ज़िम्मेदारी

परहित से होगा मन हल्का,

और “मैं” देगा दुख संसारी।

 

96.

जो करो अच्छा नेक कर्म भलाई का,

मत विचार करो किसी की गवाही का

समय आने पर हर कर्म का फल खुद बोलता है,

कर्म करता चल ये मानकर अच्छा ही होगा नतीजा अच्छाई का।

 

97. 

सभी दुखों का एक ही कारण, सांसारिक मोह माया अकारण

जिस क्षण यह सार जान लिया, हर चिंता का हो स्वत निवारण।

 

98. 

नदिया हो जाओ या तरू हो जाओ,

निस्वार्थ ही आजीवन औरों के काम आओ।

 

99. 

किसी का भला चाहना अच्छे भाव के साथ,

यहीं से होती है इंसान के नेक कर्मों की शुरुआत।

मुझे उम्मीद है, कर्म पर कविताएं पढ़कर आपको ज़िन्दगी को देखने का नया नज़रिया मिलेगा। Comment Section में मुझे ज़रूर बताएं कि कौन-सी शायरी आपको सबसे ज़्यादा पसंद आई।

Alpna Sharma